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________________ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३. प्रति संसार कीयों तिण ठांमें, उपनो श्रेणक ने घरे आई। भगवंत आगल दीख्या लीधी, पेंहिला अधेन गिनाता माही। आ अणुकंपा जिण आगन्या में। ४. मंडलों एक जोजन रों कीधो, घणा जीव वच्या तिहां आई। तिण वचीयां रो धर्म न चाल्यो, समकत आयां विण समझ न काई। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ ५. नेम कुमर परणीजण चाल्या, पसू-पंखी देख दया दिल आंणी। एहवों काम सिरें नही मोंनें, म्हारें काज मरें बहु प्रांणी। आ अणुकंपा जिण आगन्या में।। ६. परणीजण सूं परिणाम फिरीया, राजमती नें उभी छिटकाई। कर्म तणा बंध सूं नेम डरीया, तोडी आठ भवांरी सगाई॥ आ अणुकंपा जिण आगन्या में। ७. आप सूं मरता जीव जांणी नें, कडवा तूंबा रो कीधो आहारो। कीडीयां री अणुकंपा आंणी, धिन-धिन धर्मरूची अणगारो॥ आ अणुकंपा जिण आगन्या में॥ ८. फोडवी लब्द अणुकंपा आंणी, गोसाला ने वीर बचायों। छ लेस्या में छदमस्थ हूंता, मोह कर्म वस रागज आयों। आ अणुकंपा सावध जाणों॥ ९. असंजती गोसालो कुपातर, तिणनें साझ सरीर रो दीधो। धर्म जाणे तों जगत दुखी था, वले वीर ए काम कांय न कीधों। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १०. तेजू लेस्या मेल गोंसालें, बाळ्या दोय साध भसम करी काया। लबदधारी था साध घणाई, मोटा पुरषां ने क्यूं न वचाया। आ अणुकंपा सावध जांणों॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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