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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ १२. त्यांरा सुखां में नही काई ओपमा रे, तीनोइ लोक संसार मझार रे।
एक धारा त्यांरा सुख सासता रे, ओछा इधिका सुख कदेय न हुवें लिगार रे।।
१३. तीर्थ सिधा ते तीर्थ मां सूं सिध हआंरे, अतीर्थ सिधा ते विण तीर्थ सिध थाय रे।
तीर्थंकर सिधा ते तीर्थ थापनें रे, अतीर्थंकर सिधा ते विना तीर्थंकर ताहि रे।।
१४. सयंबुधी सिधा ते पोतें समझ में रे, प्रतेकबुधी सिधा ते कांयक वस्तु देख रे।
बुधबोही सिधा ते समझे ओरां कनें रे, उपदेस सुणे में ग्यांन विशेष रे।।
१५. स्वलिंगी सिधा साधां रा भेष में रे, अनलिंगी सिधा अनलिंगी माहि रे।
ग्रहलिंगी सिधा ग्रहस्थ रा लिंग थकां रे, अस्त्री लिंग सिधा अस्त्री लिंग में ताहिरे।।
१६. पुरष लिंग सिधा ते पुरष ना लिग छतां रे, निपुंसक सिधा निपुंसक लिंग में सोय रे। एक सिधा ते एक समें एकहीज सिध हूआं रे,
अनेक सिधा ते एक समें अनेक सिध होय रे।।
१७. ग्यांन दर्शन में चारित तप थकी रे, सारा हआं छे सिध निरवांण रे।
यांच्यांरा विनां कोइ सिध हूओ नहीं रे, च्यारूंई मोख रा मारग जांण रे।।
१८. ग्यांन थी जांणे लेवें सर्व भाव में रे, दर्शन सूं सरध लेवें सयमेव रे।
चारित सूं करम रोके छे आवता रे, तपसा तूं कर्मा ने दीया खेव रे।।
१९. ॲ पनरेंइ भेदें सिध हआं तके रे, सगलां री करणी जांणों एक रे।
वले मोख में सुख सगला रा सारिखा रे, ते सिध छे अनंत भेद अनेक रे।।
२०. मोख पदार्थ में ओळखायवा रे, जोड कीधी , नाथदुवारा मझार रे।
संवत अठारें में बरस छपनें रे, चेत सुद चोथ में सनीसर वार रे।।