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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ १८. थित नाम में गोत्र कर्म तणी, जगन तो आठ मोहरत सोयो जी।
उतकष्टी एकीका कर्म नीं, बीस कोडा कोड सागर होयो जी।।
१९. एक जीव रें आठ कर्मी तणां, पुदगल रा प्रदेस अनंतो जी।
ते अभवी जीवां थी मापीया, अनंत गुणां कह्या भगवंतो जी।।
२०. ते अवस उदें आसी जीव रें, भोगवीया विण नही छुटायो जी। ___उदें आयां विण सुख दुःख हुवें नही, उदे आयां सुख दुःख थायो जी।।
२१. सुभ परिणांमां कर्म बांधीया, ते सुभ पणे उदें आसी जी।
असुभ परणांमां कर्म बांधीया, तिण करमां थी दुःख थासी जी।।
२२. पांच वरणा आठोंई करम छे, दोय गंध नें रस पांचोई जी।
चोफरसी आठोइ कर्म छे, रूपी पुदगल करम आठोइ जी।।
२३. कर्म तो लूखा ने चोपड्या, वले ठंढा उंना होइ जी।
कर्म हलका नही भारी नही, सूहालो में खरदरा न कोइ जी।।
२४. कोइ तलाव जल सूं पूर्ण भस्यों, खाली कोर न रही कायो जी। __ज्यूं जीव भस्यों कर्मी थकी, आ तो उपमा देस थी ताह्यो जी।।
२५. असंख्याता प्रदेस एक जीव रें, ते असंख्याता जेम तलावो जी।
सारा प्रदेस भरीया कर्मी थकी, जांणे भरीया चोखूणी वावो जी।।
२६. एक एक प्रदेस छे जीव नों, तिहां अनंता कर्म नां प्रदेसो जी।
ते सारा प्रदेस भरीया छे वाव ज्यूं, कर्म पुदगल कीयों में प्रवेसो जी।।
२७. तलाव खाली हुवे , इण विधे, पेंहला तो नाला देवें रूंधायो जी।
पछे मोरीयादिक छोडें तलाव री, जब तलाव रीतों थायों जी।।