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________________ निर्जरा पदार्थ दोहा १. निर्जरा सातवां पदार्थ है । यह अनुपम उज्वल वस्तु है और जीव चेतन का स्वाभाविक गुण है । उसे ध्यान लगाकर सुनें । ढाल : ९ निर्जरा पदार्थ को पहचानें । १. अनादिकाल से जीव के आठ कर्मों का बंध है। उनकी उत्पत्ति के हेतु आश्रवद्वार हैं। वे उदय में आते हैं और फिर झड़ जाते हैं और इस तरह निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं । I २. द्रव्य जीव के अंसख्यात प्रदेश होते हैं। सभी प्रदेश आश्रव के द्वार हैं । और सभी प्रदेशों से कर्मों का प्रवेश होता है । ३. जीव के एक-एक प्रदेश के प्रतिसमय कर्म लगते हैं । इस प्रकार एक-एक कर्म के प्रतिसमय अनन्त प्रदेश लगते हैं । ४. वे कर्म उदय में आकर जीव के प्रतिसमय अनन्त संख्या में झड़ जाते हैं, परन्तु भरे घाव की तरह कर्मों का अन्त नहीं आता । कर्मों के अन्त करने के उपाय को न जानने से उनका अन्त नहीं आ सकता ।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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