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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ४९. मोह कर्म उदें जीव रे च्यार संज्ञा, ते तो पाप कर्म ग्रहें तांणो रे।
पाप कर्म में ग्रहे ते आश्व, ते तो लखण जीव रा जांणों रे।।
५०. उठांण कम बल वीर्यं पुरषाकार प्राकम, यांरा सावध जोग व्यापारो रे।
तिणसूं पाप कर्म जीव रें लागें छे, ते जीव , आश्व दुवारो रे।।
५१. उठांण कम बल वीर्य पुरषाकार प्राकम, यांरा निरवद किरतब व्यापारो रे। ___त्यांसू पुन कर्म जीव रे लागें ,, ते पिण जीव छे आश्व दुवारो रे।।
५२. संजती असंजती ने संजतासंजती, ते तों संवर आश्रव दुवारो रे।
ते संवर ने आश्व दोनइ, तिणमें संका नही , लिगारो रे।।
५३. इम विरती अविरती में विरताविरती, इम पचखांणी पिण जांणो रे।
इम पिंडीया बाला में बालपिंडीया, जागरा सुता एम पिछांणो रे।।
५४. वले संवूडा असंवूडा ने संबूडासंबूडा, धमीया धमठी तांमो रे।
धम्मवचसाइया इमहिज जांणो, तीन तीन बोल छे तांमो रे।।
५५. ए सगला बोल छे संवर ने आश्व, त्यांने रूडी रीत पिछांणो रे।
कोइ आश्व में अजीव कहें छे, ते पूरा , मूढ अयांणो रे।।
५६. आश्रव घटियां संवर वधे छे, संवर घटीयां आश्रव वधांणो रे।
किसों द्रब घटियों ने वधीयों, इणनें रूडी रीत पिछांणो रे।।
५७. इविरत उदें भाव घटीयां सूं, विरत वधे छे खयउपसम भावो रे।
जीव तणा भाव वधीया नें घटीया, आश्व जीव कह्यों इण न्यावो रे।।