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मंच से
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"हम सब कौओं के बीच में एक 'हंस' आकर बैठ गया है । हम उसकी अनदेखी - अनादर कैसे कर सकते है ?"
और इतना कहकर, मंच से नीचे उतर कर सहसा पहुंच गये इस अवधूत अनजान योगी के पास ।
करबद्ध विनय किया
“महात्मन् ! मंच पर पधारिये और वहाँ अपना आसन ग्रहण कीजिये ! आप जैसे हंस- परमहंस को हम कौए पहचान नहीं पाये !"
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• श्री सहजानंदघन गुरूगाथा
मंच
और इस अवधूत की अनीच्छा फिर भी उन्हें वे अपनी प्रेमभरी आगता - स्वागता कर हुए के ऊपर ले गये ।
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अपरिचित फिर भी परिचित दिखाई दिये इस नवागंतुक योगीराज का उन्होंने अपनी अंतरानुभूति से परिचय दिया और अपने वक्तव्य के स्थान पर उनका प्रवचन सुनने-सुनाने का इस अध्यक्ष संन्यासी ने विनयाग्रह किया ।
नूतन आगंतुक योगी मुनिराजने जब अपना मौन खोला और मुखर होकर अपनी वाग्धारा बहाई तब सारा स्तब्ध मुग्ध श्रोतासमूह उनकी आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति को इतनी सक्षम देखकर डोल
उठा ।
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