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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा . | प्रकरण-४ Chapter-4 आत्मकथा-आश्रमकथा संक्षिप्त गुजराती में गुरुदेव के स्वयं के हस्ताक्षरों में स्व-कथा (परार्थ हेतु स्व-जीवन एवं स्वानुभवों की निखालस कथा) इस देह की १९ वर्ष की आयु में यह देहधारी जब मोहमयी नगरी के भातबाज़ार में शा. लालजी जेठा कंपनी का विक्रय विभाग सम्हालता था, तब एक उत्तम क्षण पर एक अकथ्य निमित्त पाकर भवान्तर के अभ्यास-संस्कार से गोडाउन के एकान्त भाग में स्वविचार* में बैठे बैठे उसका देहभान छूटकर सहजसमाधि स्थिति हो गई। उस दशा में उसे ज्ञान की निर्मलता के कारण इस दुःखी दुनिया पासन हुआ । उसमें इस भरतक्षेत्र के गृहस्थ जनों की तो क्या बात,साधु-संत भी आत्मसमाधिमार्ग से लाखों योजन दूर भटक गए दिखाई दिए । यह आत्मा भी पूर्व-आराधित समाधिमार्ग से विच्छिन्न पड़ गई दिखाई दी । तत्पश्चात् उसे यकायक प्रश्न स्फुरित हुआ कि, 'मेरा मार्ग कहाँ ?' तब उसे तत्काल आकाशवाणी सुनाई दी कि ..... यह रहा तेरा मार्ग ! जा ! सिद्धभूमि में जा ! शरीर को वृक्षतल में वृक्षवत् रखकर स्वरूपस्थ बनकर रह जा !" ॐ बाद में इस आत्मा के प्रदेश प्रदेश में आनंद की लहरें उठी .... उसका शब्दचित्र खड़ा करने अबतक कोई शब्द उसे संप्राप्त नहीं हुआ है, क्योंकि वह अनुभव शब्दातीत था । कुछ समय व्यतीत हो जाने के पश्चात् किसी ग्राहक ने इस देह को झंझोड़ने से उसे पुनः देहभान प्राप्त हुआ । उक्त आदेश को उसने लक्ष्य में टंकोत्कीर्ण किया । क्रमशः उसे कार्यान्वित करने हेतु उसने हितैषियों और बुजुर्गो की आज्ञा मांगी, परंतु घर में ही रहकर साधना करने का सब का आग्रह दृढ़ रहा । फिर भी उनके इस आग्रह को परिवर्तित करने के अपने दृढ़ निर्धार से वह प्रयत्न करता रहा । फलस्वरूप वर्षभर के अंत में वे सब पिघले, फिर भी निराधाररूप में साधना करने में तो वे सहमत हुए ही नहीं; परंतु मुनिदीक्षा ग्रहण कर कुछ वर्षो पर्यंत गुरुकुलवास में बसकर, निर्भयदशा प्राप्त होने पर ही उक्त आदेश के अनुसार साधना करने की आज्ञा बुजुर्गों ने अतीव दुःखी हृदय से प्रदान की, जिसे इस देहधारी ने शिरोधार्य की । इस प्रकार कर्मसंस्कार से वडीलों के पूर्वऋण चुका कर वह अति हर्षित हुआ। “शुद्ध बुद्ध चैतन्यधन, स्वयंज्योति सुखधाम । और कहें क्या-कितना, कर स्व-विचार तो पाम ।" ११७ श्री आत्मसिद्धिशास्त्र : सप्तभाषी आत्मसिद्धि (हिन्दी) (22)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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