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[19] सघुप्रति
महावीर हरनि.30/
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दुरी लाधर जने गौतम भन्या प्रसुनत प्रथम गएरधर प्रलुखखे तुमने त्रिप त्यात उपन्नई जा, चित्रमेर था, धुपेर वा = प्रत्येक महार्थ वर्तमान पर्याय उत्पन्न थाय छे, पूर्वना पर्याये नाश पनि छे रहने हजारों नित्य रहेछ : आत्मा हत्य नित्य हो, पर्याय पसराय)) साथी, ने भेजवी सेमागे दाहशांगानी स्वयंना 522. . (11. घेति प्रथम गएर) प्रवस्ता(EK भने गूल यो मलुनो यात्मतत्व- हर्शननो महाघोष समयसरहामा समस्त विश्वमा सृष्टिना डाडामा !
सूत्रघोष : आत्माहस्ति, स. नित्योस्ति, कर्तास्ति निजकर्मणः भोक्तास्ति च पुनर्मुक्तिर्मुक्त्युपायः सुदर्शनम् ॥ घोषगान् : "आत्मा छे, ते नित्य छे छे उर्जा निर्म
[सप्तधाची आत्मविधिः ४५]
छे लोडता, व मोक्ष छे, मोक्षदाय सुधर्म" [श्री.मात्र सिद्धि शास्त्र. ४3] प्रवक्ताल ~साम सात्माना अस्तित्वने - सात्मसत्ताने सिद्ध डरती आत्मानी नित्यता, धर्म-कर्तृत्व, उर्म- लोडनृत्य, मोक्ष रहने मोक्षोपाय सद्धर्म रजा षट्पह द्वारा प्रलुझे हर्म, पुण्यन्याय, संपर, अंध-निवेशमने मोक्ष साहित्यानी समय शेष सहाजा व पंडिताने खायी, या जधामाथी अन्य हस पडतो याग प्रमुखे जगधर यह स्थापित र्याः न्द्रियनि गौतम उपरांत अग्निभूति वायुभूति, व्यस्त, सुधर्मा, मंडित, मौर्यपुत्र, सम्पित,
यसलाता, मेतार्य, प्रलास मजी इस अगियरिय पंडितो ना ४४०० शिष्यो प्रतुना अनुयायी जन्या..... अवस्ता या पंडितानी सारी ये व्ययुक्त प्रश्नथर्याना परिणामस्वरूप 'गाधरवाह जन्यो, मे २५०० वर्षो पछी ज्ञानावतार युगहेष्टा श्रीमद् राज्य द्वारा शुभरातीमा मात्मसिद्धिशास्त्र" स्वश्ये यूएर्णयएगे प्रतिजिजित भयो - जहू भागे गामधरवाहमांनी मृत्यु पाएगी
प्रवक्ता (ल): खात्मज्ञान प्राप्त, प्रभु द्वारा गएनी तुझा भने त्रिपही पाहिला गौतमाहि गणधरो यो स्थली 'दाहशांगी' द्वारा वही प्रलु-ब्यूहिष्ट सनातन शाक्त तत्वधारा, ग्रंथधारा, १४ पूर्वोना महाज्ञाननी धारा खाने प्रत्यक्ष प्रलुनी परिवर्तनकारी काहुपारी हराना धारा
प्रवडता (F): यो देशनाधारानी हेराव्याया श्रुत-सरितायी अनेक पापीयाने सापली पतिताने प्रक्षालती, पहहलितीने उध्धारती यानेडइये, जनडे विषयाने खापरी सेती निरंतर पहेचा लागी मने मनडे कपोने तारखं प्रत्तुनु धर्म तीर्थधर्मचक्र प्रवर्तन लाततार्थ की धरती पर सहयतार्थ जनी सतत् मासतु रघु ........
notes.