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अनन्य आत्मरारणप्रडा सदगुरुराजहि ।
पराभक्तिवश चरण में पुरु आत्मबलि एएं। परमगुरुराजचत्रशरणापम योगीन मशीय समालयन
•सद्गुरु महिमा
गुलाब के फतवन्य.शुरुका शिल कोमल था. मारधारॉकीभाति, उनका सुपाल था। मेरे लिये अप्राप्य, विभाट व्यक्तित्य। गाह सदित समान, उनका भाचार निमति था॥"
-मामा.श्री.पिपलताशी- कितने प्रसन्माकितने प्रशासनले सरण, ति सुशार मालवन सरल प्रऔिर तरल, कहामितण तुझे निशान्त'
-अमंतयाती निशाम्त
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