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Second Proof DL 31-3-2016 73
अखंड अनुपम देशना वदते, 'विनय-महिमा' वर्णन करते; वाणी अनराधार बहाई थी, उस दिन मेरे भग्न हृदय ने, यह एक धून लगाई थी "हे वीर प्रभु वीर !" (CH) ग्रह - भस्मासुर प्रविष्ट होते, जन्म-नक्षत्र संक्रमित बनते; इन्द्र (शकेन्द्र ने दौड़ लगाई थी, गहरी चिंता जताई थी; शासन-काज क्षण आयु बढ़ाने, प्रभु से अरज गुज़ारी थी :"अंधकार उल्लू गरजेंगे, हिंसक पाखंडी बरसेंगे / नाचेंगे अबल पशु - दीनजन तरसेंगे, साधु-साध्वी अपूज बिचरेंगे; शासन - दर्शन - संघ सब जगमें, घोर उपेक्षित बन जायेंगे । "प्रभु! रुक जाओ !! रुक जाओ ( घोरातिघोर )" क्षणवार - प्रभु ने लेश नहीं अवधारी थी, उस दिन मेरे मग्न हृदय ने यह एक धून लगाई थी : "हे वीर ! प्रभु वीर !" (CH) सिद्ध-पद-गामी तो तनिक न रुकते, 'निरुपक्रम' आयु शेष न रहते; महा निधार से रंच न हटते, भावी अनहोनी उच्चारी थीऔर निर्वाण की गति धारी थी, उस दिन मेरे भग्न- हृदयने यह एक धून लगाई थी : हे वीर ! प्रभु वीर !" (CH)
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• महावीर दर्शन
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(Insti. Change)
(प्र. F) प्रभु महावीर के प्रधान शिष्य, अनंत लब्धि निधान गणधर गौतम स्वामी ! प्रभु के प्रति उनकी सर्वथा समर्पित, अनन्य, “प्रशस्त भक्ति..... !! प्रभु से वे सदा ही ढेरों ३६०० जितने ! जिज्ञासा प्रश्नपृच्छा करते, जिससे "गौतम प्रश्नावली" एवं " गौतम-पृच्छा" आदि ग्रंथ बाद में प्रकाश में आये सूत्रादि के साथ ।
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महावीर कथा
(प्र. M) ऐसे प्रभु - संनिष्ठ गौतम स्वामी का प्रभु के प्रति आत्यंतिक राग उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होने नहीं देता था- उनके स्वयं के पचास हज़ार शिष्यगणों और अष्टापद-गमन पश्चात् साथ लाये
गये तापसों तक को भी यह अंतिम कैवल्य प्राप्ति होने पर भी !... उनको तो एक ही लगन थी
प्रभु भक्ति की वीर-अनुरक्ति की और उनकी अमृतवाणी की प्राप्ति की !
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(प्र. F) इन वचनों के द्वारा भी कभी "इणमेवं खणं वियाणिया" - वर्तमान के ये क्षण सुवर्ण-क्षण हैं, अभी, इसी क्षण ही साध लो (अपनी ) आत्मा को" तो कभी "समयं गोयम् ! मा पमाय" पलभर का भी प्रमाद मत कर, हे गौतम ।" कहकर उनकी प्रमाद की नींद उड़ाते थे प्रभु !
की अश्रवेदना इन्द्र की,