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Second Proof Dt. 31-3-2016 . 59
• महावीर दर्शन - महावीर कथा .
(आनंदगान) "आज मेरे आत्मप्रदेश में आनंदगंगा उमड़ी रे,
ज्ञानज्योति प्रगटी सर्वांग में, दृष्टि-अंधता बिनसी रे ...आज. अद्भुत आत्म-स्वरूप निहारा, देह-देवल से भिन्न रे, आत्मस्वरूप में जगत निहारा, छहों द्रव्य भिन्न भिन्न रे... आज. लोकान्त में प्रभु सिद्ध निहारे, सुख संपत्ति भंडार रे,
सिद्ध समान स्वरूप ही मेरा, निज संपत्ति अधिकार रे... आज. (- आत्मज्ञा माताजी घनदेवीजी: श्रीमद् राज. आश्रम, हम्पी, "भक्ति झरणां".5) (प्र. M) ऐसे बाह्यांतर मौनमय आनंदलोक की आनंदगंगा में निमग्न और अनंत अनंत आत्मवैभव प्राप्त प्रभु का वह अनुभवगम्य-अवक्तव्य मौनदर्शन, आज केवलज्ञान के पश्चात् जब मुखरित होने लगा तब? (प्र. F) (- तब) साड़े बारह वर्षों के गहन-गंभीर ध्यानमय प्रभु का वह महामौन, 'मौन' में से ( ॐकार ) 'नाद' में और 'नाद' में से 'शब्द' में रूपांतरित-परिवर्तित होने लगा... और अनुगुजित हो उठी शब्दों में ॐकार की दिव्यध्वनि - (गंभीर श्लोक गान : M) "गंभीर तार रव पूरित दिग्विभागः
"दिव्यध्वनि र्भवति ते विशदार्थ सर्व, भाषा-स्वभाव-परिणाम गुणैः प्रयोज्य"..
__ (- श्री भक्तामर स्तोत्र) (प्र. F) 12V2 साड़े बारह वर्ष के ध्यान-मौन के अन्त में प्रस्तुत, अपनी इस अभूतपूर्व, जग"उपकारक, अमर देशना में प्रभुने प्रकाशित किया - (सूत्रघोष : प्रतिध्वनि : M) "जीव क्या ? अजीव क्या ? आत्मा क्या, कर्म और कर्मफल क्या ? लोक क्या-अलोक क्या? पुण्य-पाप क्या ? सत्य-असत्य क्या ? आश्रवसंवर क्या ? बंधनिर्जरा-मोक्ष क्या ?"
"एगो मे सासओ अप्पा, नाण सण संजुओ । सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग लक्खणा ॥"
"- ज्ञानदर्शन युक्त शाश्वत आत्मा ही एक मेरी है, बाकी तो सारे बाह्यभाव हैं, जो परिस्थितिजनित हैं।" (प्र. F) सर्वज्ञ प्रभु की अविरति देवों के समक्ष दी गई यह प्रथम देशना रही निष्फल, जब कि दूसरी थी महासफल । (प्र. M) मध्यम पावा की उस दूसरी देशना में पधारे थे कुछ पंडित - अनुभूति शून्य, शूष्कज्ञान भरे, मान-मद में मस्त प्रकांड पंडित - 'पोथे पंडित' । आये थे वे सर्वज्ञ प्रभु महावीर को वादविवाद में परास्त करने ।
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