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Second Proof Dt. 31-3-2016 51
• महावीर दर्शन महावीर कथा •
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(सूत्रघोष प्रतिध्वनि - M) "अब से अप्रीतिकर स्थान में नहीं रहूंगा । सदा ध्यान- लीन रहूंगा । सदा मौन रहूंगा। हाथ में ही भोजन करूंगा और गृहस्थों का विनय नहीं करूंगा ।" (- श्री कल्पसूत्र ) (Forest Effects Contd.) (गीत : शिवरंजनी अन्य M) "घोर वनों में पैदल घूमे (F) पैरों में लिये लाली (F) मान मिले, अपमान मिले या देवे भले कोई गाली । (M) पंथ था उस का जंगल झाड़ी..... कंकड़-कंटक वाला (F) कभी कभी था साथ में रहता, मंखलीपुत्र गोशाला ॥" (वन में निर्भय यात्रा पदध्वनि : Horror & Rain-clouds lighting effects) ( गीत : स्वर परिवर्तन : M) ( ताल - दादरा )
“आफत और उपसर्ग की सेना, पद पद उसे पुचकारती थी; आँधी-तूफाँ और मेघ गर्जन से कुदरत भी ललकारती थी ! "दुःख से कभी न डरनेवाला, उल्टे दुःख को डराता था । सुख की शीतल छांव को छोड़कर, आग में कदम धरता / लगाता था । "पहाड़ों के पहाड़ टूटने पर भी, निश्चल हो धीर धरता था; सहायता को इन्द्र आये तब उसको भी विदा करता था ! "घोर भयानक संकट के बीच आतम-साधना चलती थी ! ज़हर हलाहल को पी जाकर, अँखियाँ अमृत झरती थीं ॥ (Voice & Instrumental Change)
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(गीत- स्वर परिवर्तन : F)
"प्रेम की पावन धारा निरंतर पापी के पाप प्रक्षालती थी । मैत्री करुणा की भावना उसकी डूबते बेड़े उबारती थी ।"
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(गीत : स्वर परिवर्तन : M) करूण-वेदना-करूण, मुरली स्वर : दृढ़ वज्र नाद : डफ)
"चंडकोशी जैसे भीषण नाग को बुझाने वीर विहार करे । जहर भरे कई दंश दिये पर, वे तो उससे प्यार करे ॥"
(प्र. F) भूमि के पेड़ाल उद्यान में संगमक देव के छह माह तक बीस प्रकार के घोर भयंकर मरणांत उपसर्ग ... !
( गीत : M: Contd.)
"होश भुला एक ग्वाला भले ही कानों में कीले मार चले । आतमभाव को जाननेवाला, देह की ना परवाह करे ।" (शेरगर्जन "देव और दानव, पशु और मानव, प्राणी उसे कई डँस रहे । हँसते मुख से महावीर फिर भी, मंगल सब का चाह रहे ॥”
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Forest Animals Effect)