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________________ Second Proor DL. 31-3-2016 - 46 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . क्यों जीवन के शूलों में, प्रतिक्षण आते जाते हो ? ठहरो सुकुमार ! गलाकर मोती पथ में फैलाऊं। तुम सो जाओ ! (2) (- महादेवी वर्मा : 'नीरजा' : आधुनिक कवि 70) (प्र. M) त्रिशला मैया ने तो सुलाया अपने सुकुमार वीर को पथ में शूलों के स्थान पर फूलों और मोतियों को बिछाकर ! पर वह कहाँ सोनेवाला था ? ... वह तो जागने और जगानेवाला था सब को, सारे जग को, यह आह्वान सुनाकर कि - (धोष-M) "जं जागरुका उपयोगवंता । उपयोगवंता खलु भाग्यवंता ।" ..... उठ्ठिए । मा पमायए ।... समयं गोयम् । मा पमायई॥" "हे जीव । छोड़ प्रमोद और जागृत हो जा !! अन्यथा रत्नचिंतामणि सम यह मनुष्यदेह निष्फल चला जायेगा ... !!!(- श्रीमद् राजचन्द्र : वचनामृत) (प्र. F) वर्धमान के जन्म से ही "श्री" एवं "आत्मश्री" का वर्धन, उनका विद्याशाला में गमन और वहाँ इन्द्र का आगमन .... इन्द्र की प्रश्नपृच्छा से पंडितगुरु का धन्य बनना, 'जैनेन्द्र व्याकरण' का सृजन होना और ..... और अपने अलौकिक बाल-पराक्रम से 'वर्धमान' से 'महावीर' नामकरण होना : चल पड़ा यह क्रम - ।..... (प्र. M) एक दिन की बात है । इस नामकरण का निमित्त बना आमल की क्रीडा का बालखेल प्रसंग । उसकी पराक्रम-गाथा सुनाने वर्धमान के बालमित्र पहुंचे हैं माता त्रिशला के पास - (बाल वृंदगीत : राग-भीमपलास; ताल-दादरा) ... .. "ओ मैया । तेरे कुंवर की करनी क्या बात ? ओ त्रिशला ! तेरे कुंवर की कहनी क्या बात ? सब से निराली उसकी जात, भली है उसकी भाँत, ओ मैया । तेरे कुंवर की करनी क्या बात ? "एक दिन सभी मिल के हम खेल खेलते थे, सुख-दुःख के घाव-दाव संग झेलते थे । निकला अचानक साँप एक महाकाय, देखते ही (उसे) सभी हम भागते चले जायँ ... बोलते हुए - 'बाप रे बाप !' "पर तेरे लाडले ने दौड़ पकडा उसे, रस्सी समान फैक छोड़ रक्खा उसे, पर काँपा न उसका हाथ ! ओ मैया ! तेरे कुंवर की करनी क्या बात ?" (46) |
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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