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________________ Second Proof DL. 31-3-2016-23 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . 4 और इस के लिए एक ही मार्ग था - "सर्वसंग परित्याग" ... भीतरी भावदशा से भरे इस वीरोचित सर्वसंत्र परित्याग के अवसर की ताक में वे तरसते रहे.. (प्रतिध्वनि-गीत) (Echoing Song) "अपूर्व अवसर ... अपूर्व अवसर ऐसा आयेगा कभी ? कब होंगे हम बाह्यांतर निग्रंथ रे ? सर्व सम्बन्ध का बन्धन तीक्ष्ण छेदकर, कब विचरेंगे महत्पुरुष के पंथ रे ? अपूर्व अवसर ।" और आखिर आया वह दिन - अपने को पहचानने हेतु जाने का, सर्वसंग परित्याग के- महाभिनिष्क्रमण के - भागवती दीक्षा के 'अपूर्व अवसर' का ... । (सूरमंडल) 'पलायन' से नहीं, क्षमा समझौता और स्नेह से ली गई इस भागवती दीक्षा के समय ही जन्मजात तीन ज्ञानवाले वर्धमान महावीर को चौथा (मन वाले जीवों के मनोभावों को जाननेवाला)"मनःपर्यव ज्ञान" उत्पन्न हुआ और वे चल पड़े अपनी आत्मा को दिलानेवाले पंचम ज्ञान और पंचम गति मोक्ष को खोजने-अनंत, अज्ञात के आत्मपथ परं : एकाकी, अकेले, अलंग ... । (सूरमंडल) (गीत) "साँप की क्रंचुलि भाँति एक दिन, इस संसार का त्याग करे । राज प्रासादों में रहनेवाला, जंगल जंगल वास करे ॥" उनकी इस हृदयविदारक विदा की बेला, इस 'ज्ञातखंडवन' की घरा में खो जाते हुए उनको देखकर पत्नी यशोदा, पुत्री प्रियदर्शना एवं बंधु नंदीवर्धन के विरहवेदना से भरे विलाप-स्वर गूंज उठे - (करुणतम गीत श्लोक) "त्वया विना वीर ! कथं व्रजामो ? गोष्ठिसुखं केन... सहाचरामो ?..." "हे वीर ! अब हम आप के बिना शून्यवन के समान घर को कैसे जायँ ? हे बन्धु ! अब हमें गोष्ठि-सुख कैसे मिलेगा? अब हम किस के साथ बैठकर भोजन करेंगे?" - लेकिन निग्रंथ, निःसंग, निर्मोही महावीर तो चल पड़े हैं - प्रथम प्रस्थान से ही यह भीषण भीष्म-प्रतिज्ञा किए हुए कि (M) (प्रतिध्वनि) "बारह वर्ष तक, जब तक मुझे केवलज्ञान नहीं होगा, तब तक न तो शरीर की सेवा-सुश्रूषा करूंगा, न देव-मानव-तिथंच के उपसर्गों का विरोधकरूंगा, न मनमें किंचित् मात्र उद्वेग भी आने दूंगा।" यहीं से शुरु हो रही इन सभी भीषण प्रतिज्ञाओं की कसौटी-रूप उनकी साड़े बारह वर्ष की आत्म-केन्द्रित साधनायात्रा-जिसमें इन्द्र तक की सहाय प्रार्थना भी अस्वीकार कर के, और भी भीषण प्रतिज्ञाएँ जोड़ते हुए, वे आगे चले - (M) (23)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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