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Second Proof DL 31-3-2016 - 16
. महावीर दर्शन - महावीर कथा .
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? मेरे अंतर्लोक के महाध्यानी महामानव महावीर न केवल मूर्तिपूजक जैनों के हैं, न प्रतिमा-प्रतिपक्षियों के, न दिगम्बरों के - न श्वेताम्बरों के न केवल जैनों के - न अजैनों के । वे जन-जन के हैं, दीनहीनों के हैं, शांतिकामी सभी मनुष्यों के हैं, आत्मज्ञान के सभी अप्सुि के हैं, सम्यक् आत्मध्यान के सभी साधक-दृष्टाओं के हैं, सचराचर भयाक्रान्त-दुःखाक्रान्त समस्त जीवसृष्टि के हैं, विश्व विराट के हैं।
सर्व-शेषांत में, हमारे अंतर्लोक के महाध्यानी और समन्वयी-स्याद्वाददर्शी निष्कारण करुणावंत महावीर के महा जीवन-दर्शन का, महावीर दर्शन (बहिर्जगत् + अंतर्जगत् दोनों) का सार-निष्कर्ष है- उनके सारे धर्म-बोध के सन्दर्भ में : (1) अभावग्रस्तों एवं संपन्नों का समान विभाजन एवं साधन-प्रदाता न्यायुक्त वैभव । (2) आचार पूर्ण"अपरिग्रह" का स्वीकार एवं गुप्त-दान युक्त संपत्ति-वितरण । नीतिमय व्यापार । (3) आनंदादि श्रावकों की भाँति विशाल गोकुलों-गोशालाओं की स्थापना और सारी वधशालाओं
का समाप्तिकरण। 1 (4) अहिंसा का व्यापक प्रयोगरूप समग्रता में आचरण-जो अपरिग्रह बिना असम्भव । (5) अभक्ष्य, अशुद्ध आहार त्याग, सप्त व्यसन त्याग, प्रमुखतः रात्रिभोजन त्याग । (6) चातुर्मास-वास पर्याप्त, साधनार्थ आश्रमों-मठों का नहीं, जैनविद्या की विद्यापीठों का निर्माण । (7) "आरुग्ग-बोहिलाभ-समाधि" प्राप्ति में आरोग्य-प्राप्ति की आत्मभानपूर्वक अग्रता, महत्ता । (8) एकान्त-मताग्रह नहीं, अनेकान्तिक स्याद्वाद-शैली, समन्वय-दृष्टि की सर्वत्र आचरणा । (9) निश्चय-व्यवहार दोनों का संतुलन रखते हुए बाह्य जड़क्रियाओं के बजाय आत्मभान युक्त
क्रिया-साधन । ... (10) नाम-रूप दोनों की आवश्यकता रूप, ध्यान का निमित्त, ऐसी प्रतिमापूजा, परंतु बाह्याडम्बर
शून्य। (11) स्वरूपानुसंधान-दाता, कषाय-मुक्ति-प्रदाता, जिनकथित आत्म ध्यान-मार्ग की पुनः स्थापना । (12) भक्ति-जिनभक्ति की अतिशुद्ध भाव से, देह-भान से मुक्त करानेवाली बिना-तमाशे की
आराधना। (13) आत्मज्ञान, अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत आदि के प्रबल प्रयोग द्वारा राज्य, देश पर प्रभाव ।
वनदय नहीं सर्वोदय की, सर्वोदय तीर्थ की स्थापना । (14) क्रिया से प्रथम और अधिक भाव को एवं श्रुतज्ञान स्वाध्याय सह ध्यान को प्राधान्य ।
इस के द्वारा प्रथम परिवार-जीवन में, फिर समाज और देश में शांति-संवाद की स्थापना।
ऐसा यह समन्वय-स्याद्वा-संवादिता-समग्रता-आत्मशांति एवं आत्मज्ञात-आत्मध्यान से संपन्न महावीर दर्शन एक संपूर्ण जीवनदर्शन हैं, जीवन-मार्ग Way of Life, एक सुनियोजित जीवनक्रम Chalked out & Planned Program of Life है, विशुद्ध जीवनशैली है, इह-परलोक उभय के लिये महामंगलकारी है-विशेषतः जीवनपथ को खोजनेवाली नूतन पीढ़ी के लिये, जिनके लिये महावीर कभी अप्रासंगिक Irrelevant नहीं, सदा-सर्वदा अति महा-प्रासंगिक है वर्तमान के इस अशांत, भयाक्रान्त, आतंकित युग में ।
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