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________________ Dt. 19-07-2018-26 I हृदय में ये सारे बीज रूप संस्कार अब यहां जे. पी. के हृदय परिवर्तक लुटेरों के शरणागति प्रयोगों की छाया में उदीयमान क्रान्तिकार कीर्ति, अपने ढंग के छोटे-से वटवृक्ष के रूप में विकसित करने जा रहा था। उसका नव-नवोन्मेषी प्रज्ञा भरा क्रान्ति खोजी दिल और दिमाग ऐसा ही कुछ साकार करने हेतु तरस रहा था, तब ही मानों इसे चरितार्थ करने कुछ ऐसी घटनाएँ उसके सामने सहज स्वाभाविक ही घटती चलीं, जो कि न उसने सोची थी, न आयोजित की थीं ! ये इस प्रकार बनी : पूर्व में वर्णित कीर्ति की जे. पी. मॉडेल की छोटी-सी फैक्ट्री दान' : 'मालिकी संविभाग' की साहसभरी प्रयोग-प्रवृत्ति अनेक अभावग्रस्तों एवं पददलित दरिद्र नारायणों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। ऐसे लोगों का एक प्रवाह-सा उमड़ पड़ा उसके साथ जुड़ने परंतु अधिक लोगों को अपने कार्य में लगाने, समाविष्ट करने की गुंजाइश उसके पास कहाँ थी ? उसके पास न तो अधिक पैसे थे, न उत्पादन बढ़ाने की सम्भावना, न कार्य स्थल की विशालता ! फिर भी उसका करुणा भरा दिल ऐसे तड़पते ज़रुरतमंदों को ना भी कहना नहीं चाहता था। उन्हें उसने अपनी प्रतीक्षा सूची में स्थान दे रखा । कीर्ति - स्मृति " परंतु दूसरों को मदद करने का उसके उदार हृदय का कार्य अपने आप अनजान अज्ञात दुनिया में उसकी प्रसिद्धि बढ़ाने लगा था। परिणामतः उसकी सारी यशगाथा एक ऐसे गिरोह और उसके मुखिया महाबली के कानों पर पड़ी जो कि सब घोर अन्यायों से त्रस्त होकर विद्रोही और पथभ्रान्त बन चुके थे और उनका विरोध विद्रोह सकारण होते हुए भी उन्हें 'असामाजिक तत्त्वों की कालीसूची में, कानून की नज़रों में, रखा गया था । उनका यह मुखिया महाबली, स्वयं एक अन्यायभुक्त भोगी, एक अद्भूत व्यक्ति था। बिहार से आया हुआ था। नाम था 'मनीराम' परंतु दिल का धनी राम था। कद्दावर शरीर, संकल्प-बद्धता सूचित करने वाला सुदृढ़ गोल चेहरा, मोटा माथा, पर इन सभी के बीच भी दूसरों के लिये द्रवित होनेवाला एक छोटा सा दिल धोती और कुर्ता पहना हुआ, पर चाल देखो तो किसी तालीमबद्ध महासैनिक की । - " " ऐसा मनीराम जाकर अपने चंद मित्रों के साथ खड़ा हुआ एकदिन अचानक, कीर्ति के सामने, कि जिसकी 'कीर्ति' उसने सुनी थी और सुनी थी उसकी बेहद अनोखी क्रान्ति योजनाएँ । उसने जाकर चरण छूकर कीर्ति को प्रणाम किया, खुद को उसके क्रान्ति कार्य में जोड़ने के लिए प्रार्थना की और ढेरों रुपये भी निकालकर सामने भेंट स्वरूप रख दिये ! (26) कीर्ति स्तंभित-सा रह गया । कीर्ति को बेशक धन की और ऐसे सुदृढ़ साथियों की ज़रुरत भी थी, परंतु अपने सिद्धांतो और नीतिमय आचार-मर्यादाओं से युक्त इस क्रान्तिकार ने इतने भारी धन को अस्वीकार करते हुए नकार दिया और आगंतुक मनीराम की छानबीन एवं परीक्षा करने उसे पूछा : "ये पैसे आप कहाँ से लाये हैं? क्या वे चोरी किये या लूटे हुए तो नहीं किसी निर्दोष जन से ?" तीन
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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