________________
Dt. 19-07-2018 - 24
है तुम को और सभी को सुखी बनाने की ।
"धन्यवाद सह,
( श्री पी. एच. देसाई के हस्ताक्षर यहाँ दिये हैं । ( हस्ताक्षरित) पी. एच. देसाई )
( पता ऊपर अनुसार M.O. के लिये / मेरे साथ पत्राचार के लिये पता है प्रफुल्ल प्रिन्टर्स का ।) कीर्ति का यह पत्र बहुत-सी बातों को स्पष्ट करता है :
१. करेंगे या मरेंगे की संकल्प शक्ति ।
२.- अपना क्रान्ति-कार्य कलकत्ता में ही करने का निर्धार ।
३. सुखी होने के लिये दूसरों के हेतु कमाना और जीना ।
४. 'सर्वेऽत्र सुखिनो सन्तु' की वैदिक भावना, "शिवमस्तु सर्व जगतः " की सर्वोदय- तीर्थ की जैन भावना और गांधी-विनोबा- जयप्रकाश की 'जयजगत्', 'सर्वोदय', अंत्योदय की भावना । स्वयं संपन्न होना और सभी को सुखी एवं संपन्न बनाने के लिये पुरुषार्थ करना । इस प्रकार का उसका 'संपन्नता - वाद" RICHISM केवल साम्यवाद और समाजवाद का ही ऊर्ध्वकृत स्वरूप है सह आध्यात्मिक, साम्यवाद का संविभाग और वितरण का ही जन्म रूप । ५. यदि अधिक और स्वैच्छिक हो तभी धन एकत्र करना मित्रों से, औरों से
प्रेमपूर्ण प्राप्ति,
दबावपूर्ण नहीं । साम्यवाद - समाजवाद का यह सर्वोदयी विकल्प भी था । कीर्ति के पत्र में व्यक्त ये सारे विचार, टूटी-फूटी भाषा में भी सही, सहज, निखालस एवं प्रामाणिक ढंग से धनप्राप्ति के इच्छुक कीर्ति में छुपे हुए सरल, संनिष्ठ एवं नूतन क्रान्तिकार का दर्शन एवं प्रस्तुतीकरण करते हैं ।
-
कीर्ति स्मृति •
तुम्हारा मित्र, कीर्तिकुमार "
चारों ओर के भ्रष्ट, स्वार्थपूर्ण एवं स्वकेन्द्रित जगत में इस उभरते क्रान्तिकार का मिशन इन विचारों और भावनाओं-अभीप्साओं के साथ, और बिना किसी संपदा स्त्रोतों के आगे बढ़ता रहा उल्टे प्रवाह प्रति तैरने की तरह ।
"
अनोखी और अद्भुत गति थी, कथा थी, क्रान्तिकारों और कलाकारों की क्रान्तिनगरी कलकत्ता में करुणात्मा क्रान्तिकार कीर्तिकुमार के सब से निराले, असामान्य ( unusual) क्रान्ति कार्यों की, जो अभी तो सब साकार होने जा रहे थे रोमांचक रूप में !!
पथ था उसका सब से अनूठा, सब से जुदा, सब से जोखिम भरा !!! उसका दर्शन अब करेंगे ।
इस उर्दू शेर का स्वामी रामतीर्थ लिखित दूसरा रूप है "बैठे हैं तेरे वर पे, तो कुछ करके ही उठेंगे ।
या वस्ल ही हो जायगा, या मरके उठेंगे ॥”
(24)