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________________ Dt. 19-07-2018 - 6 प्रकरण २ Chapter-2 बाल्यावस्था और विद्याभ्यास: पितृ विदा..... मुझ से तीन वर्ष छोटा मेरा अनुज कीर्ति हम चार बंधुओं एवं एक बहन के परिवार में सब से छोटा था। गुजरात सौराष्ट्र के अमरेली ( बडौदा राज्य) में हमारे माता-पिता के राष्ट्रीयता, स्वातंत्र्य आंदोलन, जैन तात्त्विक अहिंसक संस्कृति, संगीत एवं साहित्य के प्रकाश प्रभावक वातावरण में हमारा पालन हुआ था। गुरुसम पिताजी जमनादास रामजीभाई टोलिया जन्मजात दार्शनिक तत्त्वचिंतक, साहित्यिक, संगीताभ्यासी एवं समर्पित राष्ट्रवादी थे। हमें पालने में से ही श्रीमद् राजचंद्रजी के एवं अन्य धर्मपदों से संस्कार सींचन करनेवाली दया, ममता, वत्सलता एवं सर्व के प्रति अनुकंपा की साकार मूर्ति माता अचरतया, सभी से निराली, अति परिश्रम-निष्ठ एवं सेवाप्रधान नारी थी। प्रातः चार बजे उठकर भजन गाते गाते चक्की पिसती हुई वे हमें नींद से इन सुमधुर स्तवनों पदों के नैसर्गिक संगीतगान की ध्वनि से उठाती थीं फिर नदी से बीस-पच्चीस घड़े पानी मुंह-अंधेरे ही भरकर ले आतीं थीं, गायों की सेवा कर दही बिलोने और दूध दोहने के प्रातः कर्म में लगती थीं और दिनभर आगंतुक गरीबों को अपने ममताभरे हाथों से मुफ्त छांछ बाँटती रहती थीं । स्वातंत्र्य आंदोलन के सेनानियों को रोज भोजन कराना और उनकी यात्रा में लौटते समय बाजरे की बड़ी-. बड़ी रोटियाँ बांधकर साथ में पाथेय के रूप में बाँध देना यह उनका आनंद का कर्म रहता था ! • कीर्ति स्मृति • - (6) माँ-बाप के ऐसे दया, सेवा, राष्ट्रधर्म के संस्कारों के बीच हमारा बचपन बीता। इस सुवर्णमय बाल्यावस्था पर तो विस्तृत प्रकरण ही नहीं, पुस्तक ही लिखी जा सकती है, जिसके कुछ अंश मेरी अपनी जीवनयात्रा वार्ता 'अमरेली से अमरिका तक' में शब्दबद्ध हो रहे हैं। यहाँ तो अनुज कीर्ति के सन्दर्भ में इतना संकेत भर करना आवश्यक है कि परिवार के इस वातावरण से हम दोनों बंधुओं को राष्ट्रीय, जैन एवं सर्वधार्मिक, साहित्यिक एवं संगीत विषयक संस्कार कूट कूट कर विरासत में मिले । राष्ट्रीय संस्कारों में स्वातंत्र्य आंदोलन के एक छोटे से केन्द्रवत् बने हुए अमरेली के उस जन्म- गृह पर आते-जाते अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के ( १९३०-१९३३ के हमारे जन्मसमय के पश्चात् ) दर्शन- संपर्क का सहज लाभ मिलता रहा । इसके अतिरिक्त पिताजी हमें गांधीजी और सुभाष बाबु और बंगाल पंजाब के अनेक महान क्रान्तिकारों देशभक्तों की प्रेरक सत्यकथाएँ सुनाते रहे। 'लाल-बाल-पाल' त्रिपुटी, अरविन्द घोष, खुदीराम बोझ, शहीद वीर भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखराम आदि राष्ट्रवीरों एवं शहीदों के अतिरिक्त गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर, शरदबाबु आदि अनेक बंगला साहित्यकारों का भी हमें परिचय कराते रहे- बंगाल में पिताजी के स्वयं के ही कलकत्ता, वारीसाल जिले के गाँव आदि के व्यापार-वास एवं साहित्यपठन-लेखन-अनुवाद कार्य सह । तो बंगाल के समान ही उनका प्रत्यक्ष सम्पर्क रहा था बतन गुजरात एवं गुजराती साहित्यकारों का तत्कालीन गुर्जर साहित्यिकार, 'पंडित युग' के सर्वश्री गोवर्धनराम, कवि न्हानालाल, नरसिंहराव, ब. क.ठा., 'कलापी', आदि अनेक तो उनके घनिष्ठ मित्र थे, जिनसे तब चला हुआ सारा मूल्यवान पत्रव्यवहार 1
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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