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(3) उसे मांस, मछली, अंडे जैसे मांसाहारी आहार को छोड़ देना चाहिये और उसे कंदमूल एवं मिर्च-मसालों का उपयोग भी कम से कम कर देना चाहिये।
(4) उसे मानवता के गुणों को विकसित करने चाहिये और मृदु सौम्य, सभ्य एवं विनम्र बनना चाहिये और सदा पीडितों एवं जरूरतमंदों के प्रति अपनी शक्ति तथा संयोगों के अनुसार यथासम्भव सेवा अर्पित करने का परोपकारी स्वभाव निर्मित करना चाहिये।
(5) उसे आत्मसंतुष्ट जीवन जीना चाहिये और अपने पड़ौसी की समृद्धि को देखकर उसमें से आनंद प्राप्त करना चाहिये। सह अस्तित्व का भ्रातृ भाव बढ़ाना चाहिये - उनके वर्ण, जाति या देश के बोध को छोड़ कर ।
(6) उसे यथासम्भव आत्मसंयम का जीवन जीना चाहिये और कुछ इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं जरूरतों और विकास को दूर करना चाहिये।
(7) उसे संगीत, मनोरंजन, पिकनिक पार्टियों, खेल-कूद और सिनेमाओं के शौकों पर नियंत्रण रखना चाहिये ।
(8) उसे स्वयं की बुद्धि को मोहभ्रमित कर देनेवाले नशीले पेयों, नशा आदि से सदा दूर रहना चाहिये ।
(9) उसे पंच परमेष्ठि पर एवं उनके गुणों, लक्षणों, योग्यताओं, विशेषताओं आदि जो कि पवित्र धर्मग्रंथों में बताये गये हों उन पर अनुचिंतन करना चाहिये।
क्या है नववकार महामंत्र ? क्या है उसकी महिमा एवं पहचान ? क्या है उसका विशिष्ट स्वरूप ?
श्री नवकार महामंत्र में अड़सठ अक्षरों का समावेश होता है। जैनों में प्रवर्तित सामान्य श्रद्धानुसार ये (अड़सठ ) अक्षर तीर्थ अथवा पवित्र स्थान जैसे हैं। हमने उसकी निम्न उपमाएँ प्रस्तुत की हैं -
1. पूर्ण व्यक्ति विशेषों को अभिवंदना ।
2. पवित्र एवं सर्वोत्तम आत्माओं को प्रणिपात ।
3. सर्व पूजनीय, आदर्श साधुओं को भक्ति वंदना ।
4. जितेन्द्रीय एवं गुणवान आत्माओं को भाव वंदना । 5. प्रशांत, परिशुद्ध एवं भक्तिमय दशा का पवित्रतम स्थान ।
6. सही, सम्यक् ज्ञान का निधि भंडार ।
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