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GROCERS000000000 संतान को गर्भ में धारण करने की पूर्वसंध्या पर, एक वैश्विक ऊर्जा प्रादुर्भूत होती है, जो महा शक्तिशाली एवं सर्वव्यापी आंदोलनों से परिपूर्ण होती है। वह प्रत्येक जीवित प्राणी के हृदय में प्रवाहित होकर उनमें आनंद, संतोष और सुख की असीम ऊर्मियां और संवेदनाएँ समुत्पन्न करती है।
आर्हतों के जन्म समय पर (इन) वैश्विक ऊर्जा आंदोलनों से आकर्षित होकर इन्द्र और उनके अनुचर देवगण उन्हें मेरू पर्वत पर जन्माभिषेकोत्सव के मस्तकाभिषेक हेतु ले जाते है और उन्हें सरिताओं, सागरों, जलप्रपातों के पवित्र जल से भरे सुवर्णपात्रों से स्नान कराते हैं। उस गंधोदक पवित्र स्नानजल से अपने ऊपर छिड़काव करके वे (इन्द्र) अपनी आत्माओं को पवित्र करते हैं।
__ अर्हतेन्द्र जिस नगर में जन्म लेते हैं, उसके आकाश में संगीत सुनाई देता है और वहाँ के दिव्य जनों को सुखी, समृद्ध, संपत्तिवान और स्वस्थ बनाने और उनकी सुखसुविधा और साधनों की सारी आवश्यकताएँ पूर्ण करने हेतु इन्द्र सारे प्रयत्न करते हैं। इन्द्र, सर्वज्ञ अर्हतभगवंत अपना पवित्र देशना बोध प्रभावपूर्ण रूप से दे सकें ऐसे भाव से रौप्य, सुवर्ण एवं बहुमूल्य रत्न जड़ित समवसरण (दिव्य धर्मसभा व्यासपीठ रचना) भी सृजित करते हैं। यह दिव्य देशना-बोध-श्रवण करने हेतु देवलोक की आत्माएँ और मनुष्य एवं पशु-पंछी जैसे मानवेतर प्राणी, सभी उपस्थित होते हैं और वे सब, सर्वज्ञ भगवंतों की चमत्कारपूर्ण शक्तियों (अतिशयों) के कारण उस देशनावाणी को अपनी अपनी भाषा में सुनते और समझ लेते हैं उस समवसरण में, कि जहाँ पावन देशना दी जाती है। अशोक वृक्ष
___ अशोकवृक्ष नामक दिव्य वृक्ष सर्वज्ञ भगवंत की पश्चाद् भूमि में रहता है, जो यह सूचित करता है कि आपके सारे दुःख, चिंताएँ, कष्ट एवं कठिनाइयाँ दूर हो जायेंगे और आप सारे दुःख कष्टों से मुक्त होकर सुख, प्रफुल्लितता और प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। इसी कारण से यह वृक्ष अ-शोक' के प्रतीकात्मक नाम से पहचाना जाता है, कि जिसका व्युत्पत्ति-शास्त्रीय अर्थ होता है - सारे शोक, दुःखादि से मुक्त। पुष्पवृष्टि
उसी प्रकार फूलों की वर्षा (पुष्प वृष्टि) उत्तमोत्तम, अपूर्व सुख और मानसिक शांति का स्वयं पर आच्छादन होना सूचित करती है। -
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