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नचाया था। ध्वनि चैतन्यविज्ञान पर आधारित संगीतवाद्य नाद ध्वनि के अनुसार जल का नृत्य कराया था। ज्होन ड्रायडन ने अपनी कविता St. Cicilia's Day में यह दर्शाया है कि यह नई बात है कि ध्वनि के आंदोलन देवदूतों को धरती पर उतारकर ले आ सकते हैं, और उन्हें नचा सकते हैं उनके द्वारा ध्वनि पर नृत्य करा सकते हैं।"
स्वर्गीय डॉ. जगदीश चन्द्र बसु ने अपने वैज्ञानिक साधनों-उपकरणों के द्वारा यह सिद्ध कर दिखलाया है। उनके ये उपकरण पौधों को हिलने डुलने और अपनी पंखुड़ियों को नीचे झुका देने में समर्थ होते थे।
इसी प्रकार यह अति पवित्र मंत्र भी जब सच्चे हृदय और गहरी भक्ति के द्वारा उच्चारित किया जाये तब वह आश्चर्यजनक आंदोलन करानेवाले प्रेरक बल को खड़ा करता है, जो कि साधकों को उनके चैतन्यविज्ञान-परक-अथक आध्यात्मिक विकास के लिये मार्गदर्शन प्रदान करता है और उन्हें आत्मा की सारी नैसर्गिक मूल संपदाओं को प्राप्त करने हेतु ऊपर बतलाये अनुसार बल भी देता है और आत्मा को मिथ्याभ्रम की चंगुल से मुक्त कर देता है, अपने मन के मोह, राग, द्वेष आदि से छुड़ा देता है - मुक्त कर देता है कि जिन्होंने इस शाश्वत ऐसी आत्मा को अस्थि,रक्त और मांस आदि के अपवित्र पदार्थों से भरे हुए भौतिक शरीर के पिजड़ें में गुलाम बनाकर कैद रखा है।
अपने विकास के लिये साधक को परिशिष्ट में दर्शित प्रार्थना विषयक सचेत करनेवाली अधिकृत प्रमाणभूत पुस्तकें भी पढकर, इस महामंत्र के ध्वनि-उच्चारण में छिपे हुए गुप्त, रहस्यमय ऊर्वीकरण (ऊर्ध्वगमन) का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। साधकों को इस लेख में दी गई सूचनाओं पर भी अमल करना चाहिये। यदि इस महामंत्र के सतत उच्चारण का अभ्यास पद्धतिपूर्वक कुछ समय तक चालु रखा जाय तो साधक निश्चित रूप से वे सर्व वस्तुएँ प्राप्त करेगा जो कि ऊपर बताई गई हैं और साक्षात्कार एवं मोक्ष के प्रदेश में पहुँचेगा।
अंत में मुझे कहने दें कि यह स्पष्ट है कि प्रकृति (Nature) या वैश्विक व्यवस्था (Cosmic Order) के द्वारा किया गया समस्त विश्व का संचालन तंत्र सभी सचेतन प्राणियों पर, भगवत्कृपा के शक्तिपूर्ण कानून के अनुसार, स्वर्गीय सुख, शान्ति, चिरजीवी आनंद की वर्षा करने हेतु निर्मित है। अपने कथनी और करनी युक्त अधिकृत मार्गदर्शकों के द्वारा योग्य मार्गदर्शन प्रदान कर प्रकृति इस प्रकार के पवित्र उद्देश्य को सिद्ध करती है। नमस्कार महामंत्र ऐसे सभी पवित्र और सुसिद्ध मार्गदर्शकों की महासभा है और नमस्कार महामंत्र में दर्शित ये पांच सूत्र उपर्युक्त महासभा के पवित्र व्यक्तियों को पावन अंजलि और विनम्र अभिवंदना व्यक्त करने और उन्हें बहुमान देने हेतु है। ये परमकृपालु (पाँच) मार्गदर्शक, जो कि आत्म साक्षात्कार के स्पष्ट प्रतिनिधि हैं, सदा ही उपर्युक्त आत्मा की स्वाभाविक लाक्षणिकताओं में डूबे रहते हैं जैसा कि ऊपर बताया गया है। इसलिये इस महामंत्र का ऐसा उच्चारण साधक को अपनी