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विंधो अन राति पिसायो, इधन बिनसोधि जलायो; झाडू ले जागां बुहारी, चिंटिआदिक जीव विदारी. २२. जल छानि जीवानी कीनी, सोहू पुनि डारि जु दीनी; नहि जलथानक पहुँचाई, किरिया बिन पाप उपाई. २३. जल मल मोरिनमें गिरायो, कृमि कुल बहु धात करायो; नदियनि बिच चीर धुवाये, कोसनके जीव मराये. २४. अन्नादिक शोध कराई, तामैं जु जीव निसराई; तिनका नहि जतन कराया, गरियारे धूप डराया. २५. पुनि द्रव्य कमावन काजे, बहुं आरंभहिंसा साजे ; कीये तिसनावश अध भारी, करुना नहि रंच विचारी. २६. इत्यादिक पाप अनंता, हम कीने श्री भगवंता; संतति चिरकाल उपाई, वानी कहिय न जाई. २७. ताको जु उदय जब आयो, नानाविध मोहि सतायो; फल भुजत जिय दुःख पावे, वचतें कैसें करि गावे. २८ तुम जानत केवलज्ञानी, दुःख दूर करो सिवथानी; हम तौ तुम शरण लही है, जिन तारण बिरुद सही है. २६. जो गांवपति इक होवै, सो भी दुःखिया दुःख खोवे; तुम तीन भुवन के स्वामी! दुःख मेटो अतरजामी. ३०. द्रौपदीको चीर बढ़ायो, सीता प्रति कमल रचायो ; अजनसे किये अकामी, दुःख मेटो अतरजामी. ३१. मेरे अवगुण न चितारो, प्रभु अपनो बिरुद निहारो; सब दोषरहित करी स्वामी, दुःख मेटहु अतरजामी. ३२. इन्द्रादिक पदवी न चाहूँ, विषयनिमें नाहिं लुभाऊ; रागादिक दोष हरीजे, परमातम निजपद दीजे. ३३.
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