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________________ सूत्र अर्थ जानुं नहि, अल्पबुद्धि अनजान; जिनभाषित सब शास्त्रका, अर्थ पाठ परमान. देवगुरु धर्म सूत्रकु, नव तत्त्वादिक जोय; अधिका ओछां जे कह्या, मिच्छा दुक्कड मोय. हुँ, मगसेलीओ हो रह्यो, नहीं तान रसभीज; गुरु सेवा न करी शकु, किम मुज कारज सीझ. जाने देखे जे सुने, देवे, सेवे मोय; अपराधी उन सबनको, बदला देशु सोय. जैन धर्म शुद्ध पायके, बरतु विषय कषाय; अह अचंबा हो रह्या, जलमें लागी लाय. अक कनक अरु कामिनी, दो मोटी तरवार; उठ्यो थो जिन भजनकु, बिचमें लियो मार. सवैया संसार छार तजी फरी, छारनो वेपार करूं; प्हेलांनो लागेलो कीच, धोई कीच बीच फरु. तेम महापापी हुं तो. मानु सुख विषयथी; करी छे फकीरी अवी, अमीरीना आशय थी. दोहा त्याग न कर संग्रह करु, विषय वचन जिम आहार; तुलसी अ मुज पतितकु, वारंवार धिक्कार. कामी, कपटी, लालची कठण लोहको दाम; तुम पारस परसंगथी, सुवरन थाशु स्वाम. 63
SR No.032316
Book TitleBbhakti Karttavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1983
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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