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जीव हिंसा करता थकां लागे मिष्ट अज्ञान' ; जानी इम जाने सही, विष मिलियो पकवान. काम भोग प्यारा लगे, फल किंपाक' समान; मीठी खाज खुजावतां, पीछे दुःख की खान. जप तप संयम दोहिलो, औषध कडवी जान ; सुखकारक पीछे घनो, निश्चय पद निरवान. डाभ अणी जल बिंदुओ, सुख विषयन को चाव; भवसागर दुःखजलभर्यो, यह संसारस्वभाव. चढ उत्तंग जहांसे पतन, शिखर नहीं वो कूप ; जिस सुख अंदर दुःख बसे, सो सुख भी दुःख रूप.
पहोंचे नहि करार;
जब लग जिनके पुण्य का, तब लग उसको माफ है, अवगुन करे हजार.
पुण्य खीन जब होत है, उदय होत है पाप दाजे वनकी लाकरी, प्रजले आपोआप. पाप छिपायां ना छिपे, छीपे तो महाभाग; दाबी डूबी ना रहे, रूई लपेटी आग. बहु बीती थोडी रही, अब तो सुरत संभार ' ; परभव निश्चय चालतो, वृथा जन्म मत हार.
अज्ञानीने २ झेझाउनु नाम ३ मुदत पूरी थई नथी ४ लक्ष
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