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जड - चेतन विवेक
जड ने चैतन्य बन्ने द्रव्यनो स्वभाव भिन्न, सुप्रतीतपणे बन्ने जेने समजाय छे; स्वरूप चेतन निज, जड छे सम्बन्ध मात्र
अथवा ते ज्ञेय पण परद्रव्यमांय छे ; वो अनुभवनो प्रकाश उल्लासित थयो,
जडथी उदासी तेने आत्मवृत्ति थाय छे; कायानी विसारी माया, स्वरूपे समाया ओवा
निर्ग्रथनो पंथ भव-अन्तनो उपाय छे; देह जीव एकरूपे भासे छे अज्ञान वडे,
क्रियानी प्रवृत्ति पण तेथी तेम थाय छे; जीव नीउत्पत्ति अने रोग, शोक, दुःख, मृत्यु,
देहनो स्वभाव जीव पदमा जणाय छे; अवो जे अनादि एकरूपनो मिथ्यात्वभाव,
ज्ञानीनां वचन वडे दूर थई जाय छे; भासे जड चैतन्यनो प्रगट स्वभाव भिन्न, स्त्रील बन्ने द्रव्य निज निज रूपे थाय छे;
स्थिील —श्रीमद् राजचन्द्र
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