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(vii)
किया है। अधिक क्या कहें? ज्ञानी तीर्थंकरदेव में लक्ष होने जैन में भी पंचपरमेष्टि मंत्र में 'नमो अरिहंताणं' पद के बाद सिद्ध को नमस्कार किया है वही भक्ति के लिए यह सूचित करता है कि प्रथम ज्ञानीपुरुष की भक्ति और वही परमात्मा की प्राप्ति और भक्ति का निदान है ।
"
भक्ति माहात्म्य
"भक्ति, प्रेमरूप के बिना ज्ञान शून्य ही है । तो फिर उसे प्राप्त करके क्या करना है ? जो रुका सो योग्यता के कच्चेपन के कारण और ज्ञानी से भी अधिक प्रेम ज्ञान में रखते हैं उस कारण । ज्ञानी के पास ज्ञान चाहें उससे अधिक बोधस्वरूप समझ कर भक्ति चाहें यह परम फल है । अधिक क्या कहें ?"
श्रीमद् राजचन्द्र
( ' तत्त्व विज्ञान' : गुजराती से अनूदित )