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आत्म-स्थिरता धर्म मेरा, साधन स्वरूप-ध्यान ..नाम .. समिति ही है प्रवृति मेरी, गुप्ति ही आराम । ___ शुद्ध चेतना प्रिया सह, रमत हूँ निष्काम नाम ... परिचय यही अल्प मेरा, तनका तनसे पूछ । तन-परिचय जड़ ही है सब, क्यों मरोडे मूंछ? ..नाम ...
४. पद मन-शिक्षा:रे मन! मान तू मोरी बात क्यों इत उत बहि जात
रहे न पत सति परघर भटकत, पर-हद नृप बंधात; जड़ भी कभी तुझ धर्म न सेवे, तू जड़ता अपनात
....रे मन. १. काहेको भक्त ! विभक्त प्रभुसों, काहे न लाजे मरात! प्रियतम बिन कहीं जात न सति-मन, तू तो भक्त मनात
....रे मन. २. पंच विषय-रस सेवें इंद्रियाँ, तुझे तो लातम् लात; काहे तू इष्टानिष्ट मनावत, सुख-दुख-भ्रम भरमात
...रे मन. ३. सुनिके सद्गुरू सीख सुहावनी मनन करो दिन-रात; सहजानंद प्रभु-स्थिर-पद खेलो, हंसो सोहं समात
....रे मन. ४.
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