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देव न दीधी पांखडी जी, केम करी आवु हजुर? - मुजरो मारो मानजो जी, प्रह उगमते सूर !
सीमंधर स्वामी! कहींये रे हुं महाविदेह आवीश? सहजानंद प्रभुजी! कहींये रे हुं आपने वंदीश? समय सुन्दरनी विनती जी, मानजो वारंवार अम बालकनी विनती जी, मानजो वारंवार बे कर जोडी प्रभु विनवू जी, विनतडी अवधार सौमंधर स्वामी! कहींये रे हुँ महाविदेह आवीश? सहजानन्द प्रभुजी! कहींये रे हुं आपने वंदीश?
जय वीयराय
थोई (स्तुति) महाविदेह क्षेत्रमा सीमंधर स्वामी, सोनानां सिंहासनजी, रूपानां त्यां छत्र विराजे, रत्नमणिना दीवा दीपे जी । कुमकुम वरणी गहुंली विराजे, मोतीना अक्षत साचाजी, त्यां बेठा सीमंधर स्वामी, बोले मधुरी वाणी जी । केसर चंदन भर्यां कचोलां, कस्तुरी बरासो जी, पहेली रे पूजा अमारी होजो, उगमते प्रभाते जी।
सो क्रोड साधु सो क्रोड साध्वी जाण ऐसे परिवारे सीमंधर स्वामी भगवान दश लाख केवली ए प्रभुजीनो परिवार वाचक जश उपदेशे, वंदं नित्य वार हजार ।
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