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बढ़ रही है। यह देहधारी जिनका निश्चयात्मक आश्रय ग्रहण करके, फिरकापरस्ती से मुक्त रहकर, निर्भय रूप से आराधना कर रहा है वैसे श्रीमद् राजचन्द्रजी के असीम उपकार परम्परा की स्मृति हेतु उनका परम पवित्र नाम आश्रम के साथ जोड़ देने का इस देहधारी ने साहस किया है।
हम्पी में प्रथम चातुर्मास पूर्ण होने के पश्चात् रामनवमी के दिन निकटस्थ कृष्णापुरम जागीर के मालिक आनेगुंदी राज्य के राजगुरु रामानुज सम्प्रदाय के वयोवृद्ध आचार्य श्री तोलप्पाचार्य ने इस देहधारी को होस्पेट की जाहिर सभा में ले जाकर प्रवचन करवाया। आध्यात्मिक दृष्टि से रामायण के पात्रों का वर्णन सुनकर वे प्रमुदित हुए। उल्लास में आकर उन्होंने खड़े होकर जाहिर किया कि हंपीरत्नकूट पर हमारे हक्क की जो भूमि है वह जितनी चाहिए उतनी आज से पूज्य स्वामीजी के चरणों में सादर अर्पित करता हूँ । सभाजनों ने इस भेंट की अनुमोदना व्यक्त की। बाद में मैसूर राज्य के उस समय के गृहप्रधान आर.एम. पाटिल आश्रम की मुलाकात पर पधारे और प्रभावित होकर इस रत्नकूट पर जो सरकारी भूमि थी वह सारी इस आश्रम को सादर भेंट देकर निःशुल्क पट्टा करवा दिया। वे बार-बार आश्रम की मुलाकात पर आते हैं। इस प्रकार कृपालु की कृपा से ही इस आश्रम को 30 एकड़ के विस्तारवाला यह रत्नकूट सारा 'फ्री मार्केट ऑफ वेल्यु' मिला। इसके साथ परमकृपालु देव के नाम की सुगंध दक्षिण भारत में सर्वत्र प्रसरित हो गई।
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