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श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम - स्थापना
हेमकूट की पूर्व दिशा में सड़क से सटकर तीस एकड़ के विस्तारवाला सामान्य ऊँचाई प्राप्त, एक शिखर है जिसे रत्नकूट कहते हैं। उसके पूर्वी छोर पर मातंग पर्वत स्थित है। रत्नकूट पर लम्बी बड़ी गुफाएँ और कुछ छोटी गुफाएँ, चार प्राकृतिक जल कुण्ड, छोटे खेत और बाकी का पुढवीशिलामय विस्तार है, जिस पर विक्रम संवत् 2017 की आषाढ़ शुक्ला एकादशी दि. 24.07.1961 के दिन श्रीमद्रराजचन्द्र आश्रम' की स्थापना अत्यंत ही उल्लासपूर्वक योगानुयोग से हुई।
इस आश्रम के प्रादुर्भाव में तथा प्रकार के कर्मोदय से यह देहधारी मुख्य निमित्त बना था। विक्रम संवत् 1991 की वैशाख शुक्ला 6 के दिन महामहोत्सव से विशाल जनसंख्या की उपस्थिति में मुनि दीक्षा अंगीकार करके इस देहधारी को ‘मूलजी भाई' मिटाकर 'भद्रमुनि' के नाम से प्रसिद्ध किया गया। गुरुकुल वास में बसते हुए विनयोपासना पूर्वक साधु समाचारी, प्रचलित प्रकरण-ग्रंथ, संस्कृतप्राकृतादि व्याकरण, कोष, छंद, अलंकार, काव्य आदि ग्रंथ, जैन अजैन न्यायग्रंथ और दशवैकालिक आदि सूत्र कंठस्थ करके यह देहधारी गुरुगण में प्रीतिपात्र बना। सेवा के आदान प्रदान पूर्वक दीक्षा पर्याय के बारहवें वर्ष में धर्मऋण का निरसन कर उऋण होकर आत्मा के आदेश का पालन करने हेतु गुफावासी बना।
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