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'रत्नकूट' की प्राचीन साधना भूमि की विभिन्न गुफाओं गिरि कंदराओं एवं शिलाओं के मध्य इसका विस्तार होता चला ..... सर्व-धर्मों के साधक इस साधना से आकर्षित हो दूर दूर से आने लगे ...'श्रीमद् राजचंद्रजी की आत्मदर्शन की आतुरता एवं परमपद-प्राप्ति हेतु नियत विशुद्ध साधनामय जीवन एवं कवन" से दक्षिण के अपरिचित साधक प्रभावित होने लगे। उनके जीवन-दर्शन एवं निर्देश के अनुसार साधना करवा रहे अवधूत श्री सहजानंदघन-भद्रमुनि की अन्य धर्माचार्यों एवं राजपुरुषों ने स्तुति की। यह उनकी समन्वयात्मक स्याद्वाद शैली की साधना की एक अतुलनीय सिद्धि है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण था। रामानुज संप्रदाय के आचार्य श्री तोलप्पाचार्य एवं मैसूर राज्य के गृहप्रधान श्री पाटिल द्वारा 'रत्नकूट की जमीन का प्रदान । ३० एकड़ के विस्तार की उस पर्वतीय भूमि पर आज लगभग दस गुफाएं, सर्वसासारण एवं व्यक्तिगत निवास-स्थान, गुरुमंदिर, गुफामंदिर भोजनालय एवं छोटी-सी गौशाला पाये जाते हैं। कई निबासखंड, एक दर्शन विद्यापीठ, सभामंडप, श्रीमद् राजचंद्रजी का ध्यानालय, एवं एक जिनालय निर्माणाधीन हैं । आश्रम में एकाकी एवं सामूहिक दोनों प्रकार से सम्यग् दर्शन-चरित्र की, दूसरे शब्दों मे दृष्टि, विचार, आचार शुद्धि एवं भक्ति, ज्ञान, योग की साधना चल रही है। आश्रम के द्वार बिना किसी भेदभाव के सब साधकों के लिये खले हैं। साधकों के लिये कुछ नियम अवश्य हैं, जिसमें श्रीमद् राजचन्द्रजी के जीवन दर्शन, आचार एवं विचार का प्रतिबिम्ब