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पंडितजी प्रेरित-प्रस्तावित एवं सहजानंदघनजी-प्रमाणित आंतर्राष्ट्रीय आत्मविद्या जैन विश्वविद्यालय
- एक स्वप्न : एक आर्ष-दर्शन : एक परिकल्पना - ___ परमध्यान की अनुभूति की धन्य पलों में परमगुरुओं द्वारा दृष्ट, अभिव्यक्ति रूप में परा-वाणी-प्रसूत और इस आत्मा की स्वयं की अभीप्साओं द्वारा सेवित . . . ऐसा एक आर्ष-दर्शन, एक स्वप्न सृजित हुआ। .
श्रीमद राजचन्द्रजी प्रणीत ‘आत्म'लक्ष्य-आधारित ध्यान-ज्ञान-भक्तिसेवा-कर्म की स्वयं - समाज उभय की समग्रतापूर्ण, संतुलित, संपूर्ण साधना सह, संप्रदायातीत उन्मुक्त समन्वय दृष्टि अनुसार का, जैनविद्याओं का अनुशीलन, अध्ययन, अध्यापन प्रारम्भ हो ...
और वह भी प्रदूषित नगरों में नहीं, प्रशांत वनोपवनों में प्रकृति की गोद में, एकांत गिरिकंदराओं और शांत सरितातटों पर, सर्वज्ञों और प्राक् ऋषिओं ने बोधित किए अनुसार -
“उपत्वरे गिरिणाम्, संगमे च नदीनाम्, धियां विप्रो अजायत ।।"
- ऐसे प्रबुद्ध अभ्यासी के निर्माणार्थ सृजित हो - ‘परा-पश्यन्ति' - ऐसी वीतरागवाणी-जिनवाणी-वर्धमान भारती - जिनभारती का विश्वविद्यालय, जैनविद्याओं सहित सर्व सार्थक, श्रेयकारी विद्याओं का जैन विश्वविद्यालय ।
इस हेतु निमंत्रित कर रहे साबरमती से तुंगभद्रातट की सप्राण गिरिगुभाओं के बुलावे ...