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प्रज्ञा संचयन
सिक्खों को दिखाई दिया। उस मार्ग को अपनाने से भविष्य में बहुत अहित होगा यह गांधीजी देख और समझ सके थे। इस कारण से उन्होंने हिंदुओं को तथा सिक्खों को बदला लेने की भावना को आज़माने से पहले ही रोकने का प्रयास किया। इस कारण से जैसे जैसे मुसलमान लोग गांधीजी की प्रशंसा करने लगे वैसे वैसे हिंदु और सिक्ख अधिक झुंझलाये और खुले आम प्रचार करने लगे कि देखिये ! मुसलमान ही गांधीजी को अपने हितैषी मानते हैं । जो मुसलमानों का हितैषी हो वह तो हिंदुद्रोही ही होगा।
जनमानस में उत्तेजना फैलानेवाले अनेक प्रकार के नित नए हादसों में सर्वत्र समानरूप से सांत्वना देने का तथा लोगों को समझाने का कार्य गांधीजी के लिए अत्यंत कठिन था। फिर भी उन्होंने अनशन जैसे प्रभावोत्पादक उपाय एवं रेडिओ पर सर्वगम्य प्रवचन दे कर अपना काम जारी रखा और हिंदु तथा सिक्ख लोगों में बदला लेने की वृत्ति जो भयंकर रूप धारण कर रही थी उसे कुछ अंशों में काबू में ले कर शांत किया। परंतु ऐसे समय में वह असहिष्णु, सत्तालोलुपवर्ग प्रजा को गुमराह कर रहा था और खुले आम कहता कि अहिंसा की आड़ में आख़िर में तो गाँधीजी हिंदु और सिक्खों की ही हत्या करवा रहे हैं। लोकमानस जब पर्याप्त रूप से गाँधीजी के विरुद्ध हो गया, तब जो रूढ़िचुस्त और नामधारी धार्मिक लोग पहले से ही गाँधीजी के विरुद्ध थे और अब तक अपनी अपनी सीमा में रह कर गाँधीजी को गालियाँ देते थे, वे सब उस बुद्धिपटु सत्तालोलुप वर्ग के समर्थक हो गये । वह असहिष्णु लोगों का समुदाय हिंदु जागीरदारों एवं राजाओं को उनकी सत्ता चली जायेगी ऐसा भय दिखाकर तथा स्वयं के द्वारा उनकी सत्ता कायम रहेगी ऐसी आशा देकर हिंदु धर्म तथा हिंदु जाति के उद्धार के बहाने सब को अपने पक्ष में करने लगा, हिंदुत्वाभिमानी आचार्यों एवं महंतों को उनके परंपरागत धर्म की रक्षा का विश्वास दिलाकर अपने समुदाय में सम्मिलित करने लगा, चुस्त पूंजीपतियों को भावि भय में से मुक्ति दिलाने की आ के द्वारा अपने पक्ष में करने में सफल हुआ । परिणामस्वरूप गांधीजी का विरोध करनेवाले, कट्टरपंथी लोगों मे अनेक वर्गों का समावेश होने लगा और यह वर्ग हिंदुत्ववादी शासन के स्वप्न देखने लगा।
इस परिस्थिति ने ही कांग्रेस के विरुद्ध षड्यंत्र की रचना की और कांग्रेस को तथा देश को वर्तमान स्थिति तक लानेवाली उस महान आत्मा