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प्रज्ञा संचयन
योगशास्त्र में कहा है कि चित्तरूप नदी का प्रवाह दोनों दिशाओं में बहता है। वह कल्याण की दिशा में भी बह सकता है और अकल्याण की दिशा में भी बह सकता है । योगशास्त्र के इस कथन की पुष्टिस्वरूप है हमारा नित्य का अनुभव । गांधीजी हमारे ही जैसे तथा हमारे साथ ही रहने वाले साधारण मनुष्य ही थे, परंतु उनके चित्त का प्रवाह सदा-सर्वदा एक ही दिशा में बहा है वह विश्वविदित तथ्य है।
और वह दिशा भी है केवल कल्याण की ही । गांधीजी ने अपनी संपूर्ण शक्ति का प्रवाह लोककल्याण के मार्ग पर ही मोड़ा है - बहाया है । इसकी तैयारी करने के लिए न तो वे किसी मठ में गये हैं, न किसी वन में या पर्वत की गुफा में । मन के सहज अधोगामी झुकाव एवं अकल्याणकारी संस्कारों के प्रवाह को ऊर्ध्वगामी दिशा में एवं केवल कल्याणकारी प्रवृत्ति के प्रवाह में परिवर्तित कर दो - यह कार्य न तो किसी शूरवीर के लिए आसान है, न किसी सत्ताधारी के लिए । यह काम तो बड़े से बड़े साधकों की भी कसौटी कराये उतना कठिन है। परंतु गांधीजी की सत्य एवं प्रेम के प्रति अनन्य निष्ठा तथा सत्यप्रेममय ईश्वर पर उनकी अचल श्रद्धा ने उनके लिए यह कार्य पूर्णतः सरल सा ही बना दिया था। इसी कारण से गांधीजी सब को एक समान रूप से ज़ोर देकर कहते रहते थे कि मैं आप लोगों से भिन्न नहीं हूँ - आप लोगों के जैसा ही हूँ। मैं जो कुछ कर सका हूँ वह किसी भी स्त्री या पुरुष, युवान या वृद्ध के लिए अगर वह दृढ़ निश्चय करे तो करना सरल है । गांधीजी केवल विवेक तथा सत्पुरुषार्थ पर जोर देते थे । उनका ईश्वर उसी में समाविष्ट हो जाता था । प्रत्येक मनुष्य में विवेक एवं पुरुषार्थ के बीज तो होते ही हैं।
अतः प्रत्येक मनुष्य ईश्वर एवं ब्रह्मरूप है । प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में निवास करनेवाले ऐसे सच्चिदानंदमय अंतर्यामी को अपने व्यवहार तथा विचार के द्वारा जाग्रत करने हेतु गांधीजी रातदिन प्रयत्नशील रहते और उसीमें अक्षुण्ण आनंद का अनुभव करते।
मनुष्य सन्मार्ग का अनुसरण करे या न करे परंतु उसके मन में एक या दूसरे ढंग से सन्मार्ग की प्रतिष्ठा तो अवश्य होती है । इस कारण से गांधीजी के सन्मार्ग-दर्शन का अनुसरण करनेवाला भी और कई बार तो उससे पूर्णतः विपरीत मार्ग पर चलनेवाला भी उनके इस रवैये से उनके इस प्रकार के व्यवहार से आकृष्ट होता और एक या दूसरे रूप में उनका प्रशंसक बन जाता । इसलिए यह कह सकते हैं कि अन्य किसी भी महान व्यक्ति के जीवन ने जितने मनुष्यों के हृदय में स्थान प्राप्त किया हो