________________
लेखांक ९
गांधीजी का जीवनधर्म
जिस प्रकार गांधीजी एक भी भारतीय व्यक्ति की आर्थिक, समाजिक या राजकीय गुलामी सहन नहीं कर सकते और इसी कारण से संपूर्ण भारत की स्वातंत्र्य सिद्धि हेतु एक एक साँस लेते हैं, उसी प्रकार देश की गुलामी के विषय में सोचनेवाले, ऐसे ही मानसवाले तथा देश की केवल पूर्ण स्वतंत्रता हेतु ही दीक्षा ली हो ऐसे अन्य भी अनेक देशनेता आज भारत के कैदखानों में एवं बाहर हैं। भारत से बाहर अन्य देशों की ओर दृष्टिपात कर के सोचें तो गांधीजी की ही भाँति अपने अपने राष्ट्रों की स्वतंत्रता को न खोने के लिए, उसकी रक्षा करने के लिए, उसका विकास करने के लिए पूर्ण एवं अदम्य आकांक्षावाले स्टेलिन, हिटलर, चर्चिल या चांग काई शेक जैसे अनेक राजपुरुष हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं, फिर भी देश के या देश के बाहर के अन्य किसी भी नेता का जीवन उनके जीवन में किस धर्म का प्रभाव है, किस धर्म से वे प्रेरित हो रहे हैं उस विषय में सोचने के लिए हमें प्रेरित नहीं करता है। जब कि गांधीजी के विषय में इससे पूर्णतः विपरीत है। गांधीजी की प्रवृत्ति ग्राम उद्योगों को स्वात्मनिर्भर करने के लिए हो या पशुपालन कृषि, ग्रामसुधारणा, समाजसुधार, कौमी एकता, या राजकीय स्वतंत्रता से संबंधित हो, वे लिख रहे हो या बोल रहे हों, चल रहे हों या कोई अन्य काम कर रहे हों, उनकी प्रत्येक प्रवृत्ति में लौकिक लाभालाभ की दृष्टि से उसका मूल्यांकन करने के अतिरिक्त एक अन्य रहस्य के विषय में भी विचार करने के लिए हम प्रेरित होते हैं । और वह रहस्य अर्थात् धर्म का रहस्य ।