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आखिर आश्वासन किससे मिलता है ?
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करुणा ही थी । बापू हमारे लिए कुछ अवश्य करेंगे ही ऐसा विश्वास प्रत्येक दुःखी को आश्वासन देता था ।
और दुःख की महा होली को बुझाने का बापू का प्रयत्न भी कैसा अद्भुतअभूतपूर्व था ! नौआखली में फैली हुई जुल्मों की भयानक आग को बुझाने के लिए उनकी करुणा एक उपाय करे तो कलकत्ता में हुए हत्याकांड के प्रभाव को दूर करने दूसरा मार्ग अपनाये । बिहार में जल रही होली की आग को बुझाने का उनका मार्ग कुछ और रहा और दिल्ही के महादावानल को बुझाने के उनके प्रयास कुछ और ही रहे । आग में घिरे हुए रह कर उस आग को बुझाने के प्रयत्न जारी हों तब भी पाकिस्तान के दूर दूर के प्रदेशों में जलती आग की ज्वालाओं का शमन किस प्रकार किया जाय उसके संबंध में सक्रिय विचारणा भी निरंतर एक-सी चलती रहती । महाकरुणा का ऐसा विराट दृश्य क्या जगत ने कभी देखा था ? यही कारण है कि आज सब रो रहे हैं, सब स्वयं को अनाथ, निराधार महसूस कर रहे हैं, चाहे वह कितना ही समृद्ध हो या शूरवीर हो, नम्र सेवक हो या महान अधिकारी हो, प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा लगता है कि जो कार्य हमारी शक्ति की सीमा से बाहर था और है, वह काम यह अकेला इन्सान अपनी आंतरिक सूझबूझ से पूर्ण कर रहा था और यही विचार, यही भावना सब को रुला रही है ।
भारतवर्ष के बाहर अन्य देशों में रहने वाले समझदार लोग भी ऐसा मानते थे कि विश्वशांति के हमारे प्रयास रेत पर बनाये गए महल जैसे हैं। इन प्रयत्नों के पीछे कोई ठोस तत्त्व नहीं है । विश्वशांति के लिए जो ठोस तत्त्व आवश्यक है वह किसी की समझ में नहीं आ रहा है और अगर कोई उसे समझ रहा है तो उसे वह व्यावहारिक नहीं लग रही है। ऐसे समय में ऐसी ठोस भूमिका प्रस्तुत करनेवाले तथा अकेले ही उसे व्यावहारिक सिद्ध करनेवाले पुरुष को भारत ने जन्म दिया है और वही एक न एक दिन क्लेशकलह में डूबी हुई मानवता को चिरंतन शांति के संस्कार देने में सफल होगा । ऐसा आशास्तंभ ही जब टूट पड़े तब मानवता आँसू न बहाये तो क्या करे ? हम देख रहे हैं कि अब भी यह रुदन थमता नहीं है ।
अगर बापू महान करुणा की विराट मूर्ति हैं तो उनके वियोग का दुःख उससे भी विराट हो यह स्वाभाविक है । इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी हैं जो हमारे दुःख में वृद्धि करते हैं ।