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स्थावर (स्थीर) भयो :
पोताने हंडी, गरमी खाहि त्रास पडवां छतांय, पोतानी रिछा मुन्न, खेड स्थानेथी जीभ स्थाने, हुलनयलन न डरी राडे, सेवां स्थिर भवाने 'स्थावर' उहेवाय. EL.CL.: पृथ्वीद्वाय थी वनस्पतिडायनां भुवो (तमाम खेडेन्द्रिय भुवो)
प्रस भवो :
पोताने ठंडी, गरमी जाहि त्रास पडे त्यारे पोतानी ईच्छा मुन्ज, खेड स्थानेथी जीभ स्थाने ने कर्ध डे, हुसन यलन झरी राडे, तेवां भवाने 'प्रस' डेपाय,
ध.त: तमारां संघना श्रापड़ो, हाथी, डीडी, घोडो साहि (जेर्धन्द्रिय थी पंथेन्द्रिय सुधीनां बधां भुवो )
स्थावर भवानी दुनियामां, , मात्र खेडेन्द्रिय भुवोनो ४ समावेश थाय. परंतु प्रसनी दुनियामां तो जेर्धन्द्रिय थी पंथेन्द्रिय भवोनो समावेश थाय छे. तेथी, हवे सौ प्रथम केनी दुनिया नानी छे खेपा स्थापर (खेडेन्द्रिय) भुवोनी विचाएगा सौ प्रथम ङीशु.
(3) स्थावर (खेडेन्द्रिय) भुषोः
स्थावर भवानी प्याच्या तो खायो उपर पियारी गया. हुवे सौ प्रथम, खेडेन्द्रिय भवोनां दुस २२ (जावीस) लेहो अर्ध रीते थाय रखने ते ज्यां ड्यां छे, ते खायो सामान्यथी मात्र नामोनां उल्लेख द्वारा भागीशुं. त्यारजाह, हरेड लेह संगे कुमसर विस्तारथी पियारीशुं.