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सा रीते, स्थापर खेडेन्द्रियना स ले थया. मांथी पर पर्याप्ता छे खने पप खपर्याप्ता छे. तो खा-'पर्याप्ता-मपर्याप्ता' खरखे शं? सेनी विरोध नाडारी मेणवीसे. लुपनारे मागमा- खेडेन्द्रियमां, पिलेन्द्रियभा, पंयेन्द्रियमा मा अंने-'पर्याप्ता-सपर्याप्ता' होय छे. तेधी तेनो मर्य समयो नशीछे.
प्रश्नः पर्याप्ताः सने अपर्याप्ताटिलेशं?रपामा नेपो, स्वयोज्य पर्याप्तिसो पूर्ण ा पछी ४, मृत्यु पाभे
छ, तेस्रो 'पर्याप्ता' हेवायसने रे गुपो, स्पयोग्य पर्याप्तिनो पूर्ण ऽर्थी पहखा, मृत्युचामेछ, तेस्रो "अपर्याप्ता' हेवाय.
प्रम 'पर्याप्ति' मेरले शं नयामा "पर्याप्ति' मेटले पन नुपपानी से प्रहारनी शहित.
मापी दुख छ पर्याप्तिमा छे. मा पर्याप्तिमी, नुप ठित्यत्तिनांप्रथम समयी संतर्मुहर्तमा भेगपी से तन्नुपन पर्यंत हे छे.
खने
प्रमता से पर्याप्तिमोनांजनाममने प्याज्यासभनपरणे? क्वानः पर्याप्तिो छ छे. ते नीये मुल छ: पा साहार पर्याप्ति : साहारनां पुलोने ग्रहए। रयानी मने
तेने परिएाभावीने जलाभणा, भूतपोरे) तथा रस
उपेनुहां पाडवानी से शद्वित, ते 'आहार पर्यास्ति' हेवाय (श शरीर पर्यातिः रसभांथी लोही, मांस,मेह पोरे सात धातुप
शरीर जनापपानी, मेड प्रडारनी शहित, ते शरीर पर्याप्ति हेपायधातुः अस्थिाहाऽ), भलं, मांसा
भेट (यरजी), सोही , रस, वीर्य. (3) ईन्द्रिय पर्याप्ति: सात धातुश्म शरीरमांधी ईन्द्रियो मनापपानी
जेड प्रडारनी रास्ति, ते 'छन्द्रिय पर्याप्ति' हेपाय.
KOKUYO W-NB2800