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ॐ प्रत्येक वनस्पतिडायनां नक्षत्रो :
ने वनस्पतिनां पांडांनी नसो तथा तेनां स्टुंध - शाजाहि कोरेनां संधिस्थानो खने पर्यो स्पष्ट भेर्ध शडाय छे, 4 भेने लांगीखे तो जे सरजां लाग थतां नथी पए। वांडायूंडा डे जांयावाला लाग थाय छे,
नेने लांगीखे तो तेमां डोर्धने डोर्घ प्रभारनां तांतएगां गाय छे, नेने छेहपाथी ते दूरी उगती नथी.
खा सर्वे प्रत्येक वनस्पतिअयनां लक्षगो छे.
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संसारमा रहेल, संसारी भपोने, उहाय वनस्पतिनी विराधना डवी पडे, परंतु, बिनभ्३री वनस्पतिनी थती विराधनाथी जयपु होय, तो जुंशीधी जयी शडाय छे, लूतडाणमां, खायगे खनंलोडा, खा वनस्पतिद्वायमां न पसार डरेलो होवाथी, वनस्पति उपरनो सहभ राग खायएगां अंतरमां रहेस होय छे, तेथी, लीलोतरीनी विराधनाने → छोडवा मारे, घटाडवा माटे, भुव नल्हीथी तैयार न थाय.
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-: सवित्त-जयित्त
खेडया वनस्यति खाहि भुपोनी हिंसा डरवानी र्धरछा न होय, तेनुं नाम 'श्रावङ' परंतु, संसारमां न्वाजहारीजोनी वय्ये रहेल श्रायडे, खमुङ हिंसा तो एरवी व पडवानी छे. जा शरीर रडायचा भाटे य वनस्पतिडायनी हिंसा तो डरपी ४ पडशे. समदु - - विवेडी श्रापडने वनस्पतिनी हिंसा हाय दुरवी पडे, छतांय तेखो सथित्त पनस्पतिनी विराधनामां तो न ४ भेडाय. अयित्त (भव रहित) अवस्थामा रहेल वनस्पति खहिनो उपयोग डरवाथी पहा, आत्माने भवहिंसानो दंड तो लागे व छे. परंतु, खयित्तना जहले सयित्तनी विराधनानो दंड, खनेगयो पधारे जागे छे. तेथी, भूज विधिखे, श्रावडी सयित्तना त्यागी होय छे, परंतु, सचित्त होने उहेवाय जने खयित्त होने दुहुवाय, खे पायानी समझा। पिना, सचित्तनो त्याग न डरी शडाय. तेथी थासो, होनी दुर्ध सम४ए। सहखे जने सयित्तना त्यागी थपा द्वारा, ज्ञानी लगवंत मान्य, श्रावनुं जिरुह भेजवीजे.
KOKUYO W-N82300