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________________ 65 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ इसमें धंधा करना कारण है, पैसे का आना कार्य है। यह कारण-कार्य पना ठीक नहीं है। इसमें धंधा करना भी एक कार्य है, धंधा करने में धंधे करने का विकल्प निमित्त कारण है। धंधेरूप परिणमित हुआ पदार्थ उपादान कारण है। यह कारण-कार्यपना ठीक है। पैसे का आना भी एक कार्य है और पूर्व पुण्य का उदय निमित्त कारण है। पैसेरूप परिणमित हुआ पदार्थ उपादान कारण है। यह कारण-कार्यपना ठीक है। प्रवचन का करना भी एक कार्य है, प्रवचन करने का विकल्प निमित्त कारण है। प्रवचनरूप परिणमित हुआ पदार्थ (शब्द) उपादान कारण है। यह कारण-कार्यपना ठीक है। प्रवचन का सुनना भी एक कार्य है, प्रवचन सुनने का विकल्प निमित्त कारण है। प्रवचन सुनने रूप परिणमित हुआ पदार्थ (ज्ञान) उपादान कारण है। यह कारण-कार्यपना ठीक है। __ भला करना भी एक कार्य है, भला करने का विकल्प निमित्त कारण है। भला होनेरूप परिणमित हुआ सामनेवाला पदार्थ उपादान कारण है। यह कारण-कार्यपना ठीक है। बुरा करना भी एक कार्य है, बुरा करने का विकल्प निमित्त कारण है। बुरा होनेरूप परिणमित हुआ सामनेवाला पदार्थ उपादान कारण है। यह कारण-कार्यपना ठीक है। इसीप्रकार भाषा का बोलना, पुस्तक का ग्रहण करना, भोजन का ग्रहण करना, शरीर का पुष्ट होना, निर्बल होना इत्यादि जो कुछ भी दिखाई देता है वह सभी जड़ का कार्य है, उसमें चेतन निमित्त हैस्वयं अचेतन द्रव्य उपादान है। इसीप्रकार जानना, देखना, अनुभव करना इत्यादि सभी चेतन के कार्य हैं, उसमें जड़ द्रव्य निमित्त है और स्वयं चेतन द्रव्य उपादान है। कहा
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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