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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ बहुत पश्चाताप हुआ। पिता के रोकने पर भी तुमने जिनेश्वरी दीक्षा धारण की। उस समय आपकी आठों पत्नियों ने भी आर्यिका के व्रत धारण कर तुम्हारा अनुकरण किया था, जिससे तुमने आठों देवियों सहित स्वर्ग में देव पर्याय धारण की। देव आयु पूर्ण कर इस राजपुरी नगरी के राजा जीवन्धर हुए और वे आठों देवियाँ तुम्हारी रानियाँ हुईं। तुमने पूर्वजन्म में हंस के बच्चों को माता-पिता और स्थान से अलग कर पिंजड़े में बन्द किया था। उसके परिणामस्वरूप तुमको अपने माता-पिता से अलग होना पड़ा और बन्धन में रहना पड़ा।" मुनिराज से अपने पूर्वभवों का वृत्तान्त सुनकर राजा जीवन्धर की वैराग्य भावना वृद्धिंगत हुई और उन्होंने राजमहल में जाकर गन्धर्वदत्ता के पुत्र सत्यन्धर को राज्य भार सौंपा और भगवान महावीर के समवसरण में जिनदीक्षा धारण की। आपकी आठों रानियों ने भी अपना शेष जीवन आत्मकल्याण करने में लगा दिया। मुनिश्री जीवन्धरस्वामी ने घोर तपश्चरण किया और एक दिन आत्मस्थिरतापूर्वक केवलज्ञान की प्राप्ति कर अन्त में रेवानदी के किनारे सिद्धवर कूट (मध्यप्रदेश) से सिद्धपद प्राप्त किया, उन्हें हमारा नमस्कार हो। -ब्र. यशपाल जैन Ye ( MantMMITAMIRad LAKRA LAHAN
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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