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________________ AL जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ करके परोपकार का कार्य ही किया। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए, न तो उससे गर्व करना चाहिए और ना ही उसका दुरुपयोग करना चाहिए। चन्द्राभा नगरी से तीर्थवन्दना करते हुए जीवन्धरकुमार एक तापसी लोगों के आश्रम में पहुँचे। वहाँ मिथ्यातप करते हुए तपस्वियों को देखकर जीवन्धर को करुणा उत्पन्न हुई। उन्होंने उन तपस्वियों को वस्तुस्वरूप का यथार्थज्ञान कराया एवं उन्हें जिनधर्म में प्रवृत्त किया। आगे तीर्थ वन्दना करते हुए जीवन्धरकुमार दक्षिण देश के एक सहस्रकूट जिनमन्दिर में पहुँचे। उस मन्दिर के किवाड़ अनेकों वर्षों से बन्द थे। जीवन्धरकुमार ने मात्र भगवान की स्तुति प्रारम्भ की और मन्दिर के द्वार स्वयं ही खुल गये। __मन्दिर के सामने बैठा हुआ पहरेदार जीवन्धरकुमार के पास आया और बोला – “हे भाग्यवान! इस क्षेमपुरी नगरी में सेठ सुभद्र रहते हैं, मैं उनका गुणभद्र नाम का नौकर हूँ। सेठ सुभद्र के क्षेमश्री नाम की एक कन्या है। “ज्योतिषियों ने उसके जन्म के समय ही बताया था कि जिन भाग्यवान पुरुष के आने पर इस मन्दिर के किवाड़ स्वयं खुलेंगे, वही क्षेमश्री के पति होंगे।" अतः आप कृपया यहीं रुकिए, मैं शीघ्र ही सेठजी को यह शुभ समाचार देकर आता हूँ।" समाचार मिलते ही सेठ सुभद्र मन्दिर में आकर जीवन्धरकुमार से मिलते हैं, सेठजी को मात्र उन्हें देखते ही उनकी विशेषताएँ ज्ञान में आ जाती हैं। वे जीवन्धरकुमार के साथ अपनी पुत्री क्षेमश्री का विधि पूर्वक विवाह सम्पन्न करा देते हैं। ___ जीवन्धरकुमार को क्षेमपुरी से तीर्थ वन्दना हेतु आगे जाते समय मार्ग में एक कृषक मिला, उन्होंने उसे धर्म का ज्ञान कराया और उसे व्रतीश्रावक बनाया तथा उसे पात्र जानकर अपनी शादी में मिले हुए सभी आभूषणों को दान स्वरूप देकर आगे बढ़ गये।
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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