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EGISTRY
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MULNA
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ और उनसे बोला कि “मैं आपका सेवक हूँ, कृतज्ञ हूँ। आपत्ति के समय आप मुझे मात्र स्मरण कीजिये, मैं आपकी सेवा के लिये उपस्थित रहूँगा।" इतना कहकर यक्षेन्द्र चला गया। ___ इधर जलक्रीड़ा के लिये दो सखियाँ सुरमंजरी और गुणमाला भी आयी हुई थीं, उनके पास अपना-अपना एक विशेष प्रकार का चूर्ण था। जिसकी श्रेष्ठता पर उन दोनों में आपस में विवाद हो गया। विवाद समाप्त करने हेतु यह तय हुआ कि जिसका चूर्ण अनुत्कृष्ट होगा, वह नदी में स्नान किये बिना ही घर लौट जायेगी। चूर्ण का अनेक परीक्षकों ने परीक्षण किया पर कोई सही निर्णय पर नहीं पहुँच सका। अन्त में जीवन्धरकुमार ने प्रत्यक्ष परीक्षण कर गुणमाला के चन्द्रोदय नामक चूर्ण को सर्वोत्तम सिद्ध कर दिया। निर्णय जानकर सुरमंजरी अत्यन्त दु:खी हुई। गुणमाला के अनुनय-विनय करने पर भी स्नान किये बिना ही घर वापिस चली गई।
गुणमाला नदी में स्नान करने के पश्चात् जब घर लौट रही थी। तब वह मार्ग में एक मदोन्मत्त हाथी के घेरे में आ गयी। यह देखकर जीवन्धरकुमार ने अपने कुण्डल से तडित कर हाथी को वश में कर लिया और गुणमाला को संकट से मुक्त किया। सहज ही गुणमाला और जीवन्धरकुमार में परस्पर स्नेह हो गया। अतः उनके माता-पिता ने उन दोनों का उत्साह पूर्वक विवाह सम्पन्न करा दिया। ___ कुण्डल द्वारा हाथी को वश में करने के कारण काष्ठांगार जीवन्धर से बहुत अप्रसन्न/क्रोधित था; क्योंकि वह मदोन्मत्त हाथी उनका था और