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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ । ___35 आश्वस्त किया कि आप इस बालक के पालन-पोषण की चिन्ता न करें। इस बालक का पालन-पोषण बड़े ही प्यार से किसी कुलीन खानदान में रहकर धर्मप्रेमी श्रीमन्त दम्पत्ति द्वारा योग्यरीति से होगा। देवी द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार ही जीवन्धरकुमार सेठ गन्धोत्कट और उसकी सेठानी सुनन्दा के घर सुखपूर्वक रहते हुए शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की भाँति वृद्धिंगत होने लगे। उधर विजयारानी भी वन में तपस्वियों के आश्रम में जाकर धर्म आराधना करते हुए अपने मानव जीवन को सफल करने लगीं। कुछ काल पश्चात सुनन्दा ने नंदाढ्य नाम के पुत्र को जन्म दिया। नंदाढ्य के साथ ही जीवन्धर का लालन-पालन हुआ और आर्यनन्दी नामक गुरु के पास जीवन्धर का विद्याभ्यास हुआ, जिससे वह थोड़े ही समय में उद्भट विद्वान बन गया। ___ एक दिन आर्यनन्दी ने (जो इसी भव में इससे पहले मुनि थे और भस्मक व्याधि के कारण उन्हें अपने गुरु की आज्ञानुसार मुनि अवस्था का त्याग करना पड़ा था।) जीवन्धर को एक कथानक के बहाने अपना ही पूर्व वृत्तान्त सुनाया। जो इसप्रकार है - ___“विद्याधरों के अधिपति एक लोकपाल नाम के न्यायप्रिय प्रजापालक राजा राज्य करते थे, वे स्वयं तो धर्मात्मा थे ही, प्रजा को भी समय-समय पर धर्मोपदेश दिया करते थे। एक बार राजा लोकपाल ने धनादि वैभव से उन्मत्त हुए अपने प्रजाजनों को उनके वैभव की मेघों की क्षणभंगुरता से तुलना करके उनके वैभव एवं ऐश्वर्य की क्षणभंगुरता का ज्ञान कराया तथा स्वयं भी क्षणभंगुर मेघमाला देख कर इस क्षणिक संसार से विरक्त होकर मुनि हो गये। अकस्मात उन्हें महाभयंकर भस्मक रोग हो गया। अतएव अपना मुनिलिंग छेद कर रोग शमन के लिए भोजनार्थ यत्र-तत्र भटकने लगे। एक दिन वे गन्धोत्कट सेठ के यहाँ भोजन की इच्छा से उनकी भोजन शाला में गये, वहाँ तुम भी भोजन कर रहे थे। तुमने उनकी भोजनेच्छा को समझ लिया। तब तुमने रसोइया को उन्हें भोजन कराने का
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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