SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ उदय आ गया है। अतः हम पर दुःख और आपत्तियों का आना तो अनिवार्य ही है। जिसप्रकार क्षणभंगुर जल का बुलबुला अधिक देर तक नहीं टिक सकता, उसीतरह यौवन, शरीर, धन-दौलत, राज-शासन आदि अनुकूल संयोग भी क्षणभंगुर ही हैं। इस कारण इन अनुकूल संयोगों का वियोग होना अप्रत्यासित नहीं है। अतः तुम शोक मत करो। यद्यपि यह सब मेरे मोहासक्त होने का ही दुष्परिणाम है; पर.... ..... जो होना था वही तो हुआ है। तुम्हारे स्वप्नों ने पहले ही हमें इन सब घटनाओं से अवगत करा दिया था। स्वप्नों के फल यही तो दर्शाते हैं कि अब अपना पुण्य क्षीण हो गया है; अतः वस्तु स्वरूप का विचार कर धैर्य धारण करो।" - इसतरह राजा ने रानी को समझाया। रानी को केकीयन्त्र में बिठाकर यंत्र को आकाश मार्ग से भेजने के बाद राजा को स्वयं अपनी ही सेना से युद्ध करना पडा। कुछ समय पश्चात् युद्ध की व्यर्थता को जानकर राजा विरक्त हो गये और सल्लेखनापूर्वक शरीर का त्याग कर स्वर्ग में देव हुए। केकीयन्त्र ने गर्भवती रानी विजया को राजपुरी की श्मशान भूमि में पहुँचा दिया। वहीं रानी ने जीवन्धरकुमार को जन्म दिया। उसी समय चम्पकमाला नामक देवी ने धाय माँ के वेश में आकर रानी से कहा कि आप अपने पुत्र के लालन-पालन की चिन्ता छोड़ दो। उसका पालनपोषण तो राजकुमारोचित्त ही होगा। रानी ने पुत्र को राज मुद्रांकित अंगूठी पहनाई और स्वयं वहीं झाड़ियों में छिप गई। तभी गंधोत्कट सेठ अपने नवजात मृत पुत्र के अन्तिम संस्कार हेतु वहाँ आये और अवधिज्ञानी मुनि के बचनानुसार नवजात जीवित पुत्र को खोजने लगे। सेठ को राजपुत्र जीवन्धर मिल गये, वह राजपुत्र जीवन्धर को लेकर घर पहुंचा और अपनी पत्नी सुनन्दा से
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy