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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ स्त्रियों का अवलम्बन छोड़कर मात्र एक स्त्री का अवलम्बन रखा है। इसका अर्थ है कि उसकी पराधीनता अब मात्र एक स्त्री तक ही सीमित है। जब उसका स्वावलंबन और बढ़ता है, तो एक स्त्री की भी जरूरत नहीं रहती। इसी प्रकार धन-वैभव की बात है। जितना स्वावलंबन बढ़ता जाता है, उतना ही बाह्य अवलम्बन छूटता जाता है। अतः हमें अपनी दृष्टि यह बनानी होगी कि परावलम्बन जीव की हीनता है, वैभव नहीं। ___जो जीव परिग्रह को पराधीनता समझता है, वह स्वावलंबन बढ़ाता है और परिग्रह से हट जाता है; परन्तु जिसने परिग्रह को वैभव मान रखा है, वह उससे नहीं छूट सकता। वास्तव में दूसरे से तो सब छूटे हुए ही हैं, उन्हें केवल अपने ममत्वभाव ने ही बाँध रखा है। ___ उधर केवली भगवान से धर्मश्रवण करने के बाद इन्द्रजित् और मेघवाहन ने अपने पूर्वभव पूछे केवलज्ञानी ने इसप्रकार बतलाया - ____ कौशाम्बी नामक नगरी में दो भाई रहते थे। एक का नाम प्रथम था और दूसरे का नाम पश्चिम था। दोनों बहुत दरिद्र थे। एक दिन की बात है कि विहार करते हुए वहाँ भवदत्त नामक मुनिराज आये। दोनों भाइयों ने उन मुनिराज से धर्मश्रवण करके ग्यारहवीं प्रतिमा के व्रत धारण कर लिये। वे क्षुल्लक' श्रावक हो गये। भवदत्त मुनिराज के दर्शन हेतु वहाँ कौशाम्बी नगरी का राजा इन्द्र भी आया हुआ था। महाज्ञानी मुनिराज उसे देखकर समझ गये कि इसका मिथ्यादर्शन दुर्निवार है। अतः वे उपेक्षाभाव से बैठे रहे, उस राजा को उपदेश देने में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखलाई। तदनन्तर राजा के चले जाने पर उसी नगरी का नन्दी नामक एक जिनभक्त सेठ भी मुनिराज के दर्शन के लिये आया। मुनिराज ने वात्सल्यपूर्वक उपदेश आदि के द्वारा उसे आदृत किया, जिसे देखकर पश्विम नामक भाई ने यह निदान किया कि मैं धर्म के प्रसाद से इस सेठ का पुत्र बनूँ। उसके बड़े भाई और गुरु दोनों ने उसे बहुत समझाया कि
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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