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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ एकान्ती गुरु का शिष्य - अरे, मेरी एक मोचड़ी नहीं दिखती। एकान्ती गुरु - हमारी मोचड़ी कहाँ गई ?
एकान्ती गुरु का शिष्य - मोचड़ी कौन उठा ले गया ? मोचड़ी, मोचड़ी !
अभय - क्या हुआ महाराज ?
एकान्ती गुरु - कुमार ! हमारी एक-एक मोचड़ी कोई उठा ले गया है।
चेलना - क्या आपकी मोचड़ी कोई उठा ले गया है ? एकान्ती गुरु - हाँ, हमारी मोचड़ी कोई ले गया है। चेलना - (जोर से) अरे सैनिको ! (दो सैनिकों का प्रवेश) सैनिक - (विनय से) आज्ञा, महारानीजी !
चेलना - इन एकान्ती गुरुओं की यहाँ से कोई एक-एक मोचड़ी उठा ले गया है, तुम अतिशीघ्र मोचड़ी की खोज करके लाओ।
सैनिक - जो आज्ञा। (सैनिक एकान्ती गुरुओं की मोचड़ियों की खोज करने जाते हैं। चेलना, अभय और एकान्ती गुरु-शिष्य वही खड़े रहते हैं। कुछ क्षणों में सैनिक पुनः आ जाते हैं।)
सैनिक - महारानीजी ! सब जगह खोज की, पर मोचड़ियों का कहीं पता नहीं लग सका।
एकान्ती गुरु - (खिन्नता से) फिर यहाँ से मोचड़ी गई कहाँ ? यदि यहाँ से कोई उठा कर नहीं ले गया तो क्या धरती निगल गई ?
चेलना - (व्यंग्य से) हे महाराज ! अभी कुछ देर पहले आप ही कह रहे थे कि हम सर्वज्ञ हैं, फिर आप अपने ज्ञान से ही क्यों नहीं जान लेते कि आपकी मोचड़ी कहाँ गई ?