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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२
उत्तर-श्री मुनिराजों को निजात्म आराधना के कारण अनेक ऋद्धियाँ प्रगट हो जाती हैं।
जैसे -चारणऋद्धि, वचनऋद्धि, जलऋद्धि, कायऋक्रि आदि। श्री बालिमुनि को कायबल ऋद्धि थी। उन्होंने जिनालयों आदि की रक्षा के भाव से अपने बाँये पैर का अंगूठा नीचे को दबाया/मुनि वज्रवृषभनाराचसंहनन के धनी तो थे ही, एक अंगूठे को जरा-सा नीचे की ओर किया कि उसका बल भी दशानन को असह्य हो गया। उसके भार से दबकर वह निकलने में असमर्थ हो जाने से जोर-जोर से चिल्लाने लगा - मुझे बचाओ, मुझे बचाओ; उसकी करुण पुकार सुनकर विमान में बैठी हुई मंदोदरी आदि रानियाँ तत्काल पूज्य बालि मुनिराज के पास दौड़ी आईं और हाथ जोड़कर नमस्कार करती हुईं अपने पति के प्राणों की भिक्षा माँगने लगीं। हे प्रभु ! आप तो क्षमावंत, दयामूर्ति हो, हमारे पति का अपराध क्षमा कीजिए प्रभु ! क्षमा कीजिए। ___ परम दयालु मुनिराज ने अपना अंगूठा ढीला कर दिया, तब दशानन निकलकर बाहर आया। तब मुनिराज के तप के प्रभाव से देवों के आसान कम्पायमान होने लगे। तब देवों ने अवधिज्ञान से आसन कम्पित होने का कारण जाना। अहो मुनिराज ! आप धन्य हो, आपका तप महान है। इसप्रकार कहते हुए सभी ने अपने आसनों से उतर कर परोक्ष नमस्कार किया और तत्काल सभी ने कैलाश पर्वत पर आकर पंचाश्चर्य बरसाये! एवं श्रीगुरु को नमस्कार किया। पश्चात् दशानन का “रोतिति रावणः" अर्थात् रोया इसलिए रावण नाम रखकर देव अपने-अपने स्थानों को चले गये।
श्री बालि मुनिराज की तपश्चर्या का प्रभाव देखकर रावण भी आश्चर्य में पड़ गया। वह मन ही मन बहुत पछताया, अरे बारम्बार अपराध करने वाला मैं कितना अधर्मी हूँ और ये बालिदेव सदा निरपराधी होने पर भी