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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १२
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उड़ने लगे, मानों वे श्री गुरुओं की प्रदक्षिणा दे रहे हों । वनचर प्राणी गुरुगम्भीर मुद्रा को निरखकर अपने आगे के दोनों पैर रूपी हाथों को जोड़कर मस्तक नवाकर नमस्कार करके गुरु पदपंकजों के समीप बैठ गये। सदा वन में जीवन-यापन करने वाले मनुष्यों ने तो मानों अनुपम निधि ही प्राप्त कर ली हो । वन में मुनिराज को देखकर वनपाल का हृदय पुलकित हो गया और वह दौड़ता हुआ राजदरबार में पहुँचा और हाथ जोड़कर राजा साहब को मंगल सन्देश देता हुआ बोला
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हे राजन् ! आज हमारे महाभाग्य से अपने ही वन में संघ सहित मुनिराज का मंगल आगमन हुआ है।
महाराजा बालि ने तत्काल हाथ जोड़कर सात कदम चलकर मस्तक नवाकर गुरुवर्यों को परोक्ष नमस्कार किया, पश्चात् वनपाल को भेंट स्वरूप बहुमूल्य उपहार दिए। उसे पाकर वनपाल अपने स्थान को लौट
आया ।
महाराजा बलि ने मंत्री को बुलाकर कहा - आज नगर में मुनिवरों के दर्शनार्थ चलने की भेरी बजवा दीजिए ।