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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग- १० / ५३ प्रसन्नचित्त होकर दीवानजी के पास गया और दीवानजी से बोला कि दीवानजी! "जो होता है सब अच्छे के लिए" यह बात मेरे लिए तो सत्य निकली; परन्तु तुमने कुए में गिरकर भी यह बात क्यों कही थी ? दीवान ने कहा कि हे महाराज ! मेरे लिए भी यह बात सत्य ही साबित हुई; क्योंकि यदि मैं कुए में न गिरता तो मैं भी आपके साथ उन भीलों के चंगुल में फंस जाता और मेरी बलि चढ़ जाती। अतः मेरा कुए में गिरना भी अच्छे के लिए ही हुआ। अतः “जो होता है सब अच्छे के लिए" ही होता है। यह तो एक स्थूल दृष्टांत है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में प्रतिदिन अच्छे-बुरे अनेकों प्रसंग बनते ही हैं; परन्तु उन समस्त प्रसंगों के बीच में रहकर अपने परिणामों को शांत और समाधान पूर्ण रखना तथा उनमें से अपने आत्म हित के ही मार्ग की प्रेरणा लेना, यही आत्मार्थी का मुख्य कर्तव्य है । लौकिक सुख-दुख के किसी भी प्रसंग में कायरों की भांति बैठे रहना यह मुमुक्षु का काम नहीं है; परंतु अत्यंत धैर्य पूर्वक वीर संतो के मार्ग को वीरता पूर्वक पकड़े रहना। इसप्रकार जो कोई प्रसंग हो, वह सब अपने लिए अच्छा ही होता है। ऐसा उसमें से अपना हित निकालना चाहिए और अपने हित के लिए सम्पूर्ण सामर्थ्य प्रगट करना ही आत्मार्थी का प्रथम कर्तव्य है। - - यह जीवन दुखों के लिए नहीं मिला है, पाप के लिए नहीं मिला है; परन्तु चैतन्य की महान आराधना करने के लिए - मिला है, सुख के लिए मिला है । मुमुक्षु का यह जीवन वीतरागी पवित्रता प्राप्त करने के लिए है। जहाँ सच्ची मुमुक्षुता है, वहाँ जो भी होता है सब अच्छे के लिए ही होता है। दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवतापहारि भव्यात्मनां विभव-संभव - भूरिहेतु।
SR No.032259
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2007
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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